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मुक्ति का महाख्यान और सुकान्त

मुक्ति का महाख्यान और सुकान्त बांग्ला कविता की बात सुकान्त की कविता के बिना नहीं की जा सकती। सुकान्त का जन्म बांग्ला तिथि के हिसाब से तीस श्रावण 1333 को हुआ और मृत्यु उनतीस बैसाख 1354 को हुई। केवल इक्कीस वर्ष की आयु में अपनी रचनात्मक प्रतिभा से संसार को चकित कर उनकी जीवनलीला समाप्त हुई। बंगाल अपने कवियों और सांस्कृतिक विरासत को लेकर हमेशा गौरवान्वित रहा है। एक से बढ़कर एक कवि उसके पास मौजूद हैं। लेकिन सुकान्त भट्टाचार्य एक कार्र्यकत्ता कवि थे। जनता से जुड़ा हुआ, उनके बीच का, उनका अपना कवि। आजादी के ठीक पहले के जनइतिहास, जनचेतना और जनांदोलनों की साक्षी रही उनकी कविता अपने समय का जीवंत दस्तावेज है। वर्तमान से जुड़नेवाला रचनाकार अपने आप इतिहास बनाता है , उसके वर्तमान के सरोकार इतिहास के सरोकार बन जाते हैं। एक समय में ही वह वर्तमान और इतिहास दोनों को बना रहा होता है और भविष्य पर उसकी ऑंखें टिकी होती हैं। इसे समझने का सबसे अच्छा तरीका सुकान्त की कविता को पढ़ना है। आज भी बंगाल में दुर्गापूजा से लेकर किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुकान्त की कविताओं के रिकार्ड बजाए जाते हैं और उसकी प्रभावका
मुक्ति का महाख्यान और सुकान्त बांग्ला कविता की बात सुकान्त की कविता के बिना नहीं की जा सकती। सुकान्त का जन्म बांग्ला तिथि के हिसाब से तीस श्रावण 1333 को हुआ और मृत्यु उनतीस बैसाख 1354 को हुई। केवल इक्कीस वर्ष की आयु में अपनी रचनात्मक प्रतिभा से संसार को चकित कर उनकी जीवनलीला समाप्त हुई। बंगाल अपने कवियों और सांस्कृतिक विरासत को लेकर हमेशा गौरवान्वित रहा है। एक से बढ़कर एक कवि उसके पास मौजूद हैं। लेकिन सुकान्त भट्टाचार्य एक कार्र्यकत्ता कवि थे। जनता से जुड़ा हुआ, उनके बीच का, उनका अपना कवि। आजादी के ठीक पहले के जनइतिहास, जनचेतना और जनांदोलनों की साक्षी रही उनकी कविता अपने समय का जीवंत दस्तावेज है। वर्तमान से जुड़नेवाला रचनाकार अपने आप इतिहास बनाता है , उसके वर्तमान के सरोकार इतिहास के सरोकार बन जाते हैं। एक समय में ही वह वर्तमान और इतिहास दोनों को बना रहा होता है और भविष्य पर उसकी ऑंखें टिकी होती हैं। इसे समझने का सबसे अच्छा तरीका सुकान्त की कविता को पढ़ना है। आज भी बंगाल में दुर्गापूजा से लेकर किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुकान्त की कविताओं के रिकार्ड बजाए जाते हैं और