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Showing posts from November, 2009

कैथरीन विलियम्स की एक कविता

जितना मुझे याद है उससे ज्यादा भूल चुकी हूँ एक बिखरे अतीत की अनजान कहानियों में खुद को खोजती हुई। विस्थापन,ताकत के दुरुपयोग और सरोकारविहीनता के धुंधलके में खोई जिंदगी के बीच पैंतालीस वर्ष बाद, फिर मैं जीवित हुई- अंधकार से निकल रोशनी के लिए (प्रस्तुति -सुधा सिंह)

मजदूरबोध का महान कवि‍ मुक्‍ति‍बोध - वि‍श्‍वनाथ त्रि‍पाठी

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           सबसे पहली बात यह कि‍ मुक्‍ति‍बोध अखण्‍ड भाकपा के सदस्‍य थे। शमशेरबहादुर सिंह ने 'चॉंद मुँह टेढ़ा है' की जो भूमि‍का लि‍खी है उसमें मजदूरों लि‍ख है की मजदूरों के जुलूसों में भाग लेते थे, जुलूस पर जो पुलि‍स के अत्‍याचार होते थे उन्‍हें प्रत्‍यक्ष देखा और झेला था, 'नया खून' के संपादक थे। और 'तारसप्‍तक' में प्रकाशि‍त जो कवि‍ता है मुक्‍ति‍बोध की 'पूंजीवाद के प्रति‍' वह उनकी प्रारंभि‍क कवि‍ताओं में से है। उसमें एक पंक्‍ति‍ आती है ' कि‍ केवल एक जलता सत्‍य देते टाल ।'   यह जानना मुश्‍कि‍ल नहीं है कि‍ मुक्‍ति‍बोध जलता सत्‍य कि‍से कहते थे। मुक्‍ति‍बोध की मानसि‍क या रचनात्‍मक प्रवृत्‍ति‍ यह थी कि‍ वो कि‍सी समस्‍या की अनदेखी नहीं करते। केवल भौति‍क सामाजि‍क समस्‍याएं नहीं बल्‍कि‍ मानसि‍क वैयक्‍ति‍क समस्‍याओं और उलझनों का दबाव उन पर पड़ता था, उन पर भी अपनी कवि‍ताओं में वि‍चार करते थे। इसलि‍ए उनकी कवि‍ता में एक उलझाव लगता है। उनकी मशहूर कवि‍ता की एक महत्‍वपूर्ण पंक्‍ति‍ है 'एक कदम उठाता कि‍ सौ राहें फूटती हैं।' यह उनकी कवि‍ता की रचनात्‍

सभ्यता समीक्षा के बड़े आलोचक हैं मुक्‍ति‍बोध- सुधीश पचौरी

सभ्यता समीक्षा के बड़े आलोचक हैं मुक्‍ति‍बोध सुधीश पचौरी मुक्‍ति‍बोध की चि‍न्‍ता के केन्‍द्रीय वि‍षय हैं प्रेम और सौंदर्य। बुनि‍यादी प्रश्‍न मुक्‍ति‍बोध की कवि‍ता में ही आ गया है ' समस्‍या एक - मेरे सभ्‍य नगरों और ग्रामों में सभी मानव सुखी सुंदर व शोषणमुक्‍त कब होंगे ? ये उनकी कवि‍ता का एक अंश है और यही उनकी चि‍न्‍ता का बुनि‍यादी वि‍षय रहा है। मुक्‍ति‍बोध बार बार कहते हैं कि‍ मानव प्रेम और सौंदर्य ये मेरी चि‍न्‍ता के प्रमुख वि‍षय हैं। नयी कवि‍ता के उस दौर में , जो 1943 के आसपास का दौर है , ये लोग प्रगति‍शील आंदोलन के साथ सीपीआई के सदस्‍य थे , नेमीचंद जैन , मुक्‍ति‍बोध आदि‍। उस समय उन्‍होंने तारसप्‍तक में एक बयान लि‍खा है , उससे सि‍द्ध होता है कि‍ ' नयी राहों ' के अन्‍वेषण की व्‍याकुलता उनमें ज्‍यादा है। उस समय का जो भारत है , इस उभरते हुए नए भारत में , नया मध्‍यवर्ग और नि‍म्‍नमध्‍यवर्ग , उसके भवि‍ष्‍य की चि‍न्‍ता इनकी केन

प्रो रमेशचन्द्र शर्मा नहीं रहे

प्रो रमेशचन्द्र शर्मा नहीं रहे हम अपने सभी मित्रों और शुभचिंतकों को अत्यंत खेद के साथ सूचित करते हैं कि प्रो रामचन्द्र शर्मा , जियोंपोलॉजिस्ट विभाग , स्कूल ऑफ नैशनल स्टडीज , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का दिनांक 13 नवंबर , 2009 को मध्यरात्रि एक बजकर अट्ठावन मिनट पर उनके निवास स्थान डी 37, छतरपुर हिल्स , नई दिल्ली- 110074 पर स्वर्गवास हो गया। वे 78 वर्ष के थे। प्रो आर सी शर्मा ने राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर मरूस्श्स्लों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किए। ' ओषनोग्राफी ' उनकी प्रसिध्द पुस्तक है। आपका जन्म सन् 1932 में रामगंज , अजमेर में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1956 में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान पर रहते हुए भूगोल विषय में स्नातकोत्तार दर्जे में स्वर्णपदक हासिल किया। वर्ष 1966 में कॉमनवेल्थ फेलोशिप , ईडेनबर्ग , यू के , पानेवाले वे पहले भूगोलविद् थे। उन्होंने 1956 से 1971 तक इलाहाबाद वि वि और उसके बाद जे एन यू में अध्यापन किया। देश के कई विश्वविद्यालयों में भूगोल विभाग आरंभ करवाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। उनके दीर्घ अध्यापनकाल में कभ ख्यात लोग उनके
जे एन यू में आर्थिक भूगोल के जाने माने प्रोफेसर श्री आर सी शर्मा का आज13 तारीख को तड़के डेढ़ बजे निधन हो गया। उनके परिबारीजनो की तरफ से यह सूचना आज सुबह साढे दस बजे मिली।उनका अंतिम संस्कार लोदी रोड क्रेमेटोरियम , जंगपुरा में शाम 5 बजे किया जायेगा। हिन्दी की प्रसिद्ध लेखिका और उनकी पत्नी नासिरा शर्मा और परिबार के अन्य सदस्यों अनिल, अंजुम, जमान की शोक की इस घड़ी में हम उनके साथ हैं।