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Showing posts from December, 2009

राससुन्दरी दासी के बहाने स्त्री आत्मकथा पर चर्चा

राससुन्दरी दासी की आत्मकथा 'आमार जीबोन' नाम से सन् 1876 में पहली बार छपकर आई। जब वे उनसठ बरस की थीं तो इसका पहला भाग लिखा था। 88 वर्ष की उम्र में राससुन्दरी देवी ने इसका दूसरा भाग लिखा। जिस समय राससुन्दरी देवी यह कथा लिख रही थीं, वह समय 88 वर्ष की बूढ़ी विधवा और नाती-पोतों वाली स्त्री के लिए भगवत् भजन का बतलाया गया है। इससे भी बड़ी चीज कि परंपरित समाजों में स्त्री जैसा जीवन व्यतीत करती है, उसमें केवल दूसरों द्वारा चुनी हुई परिस्थितियों में जीवन का चुनाव होता है। उस पर टिप्पणी करना या उसका मूल्यांकन करना स्त्री के लिए लगभग प्रतिबंधित होता है। स्त्री अभिव्यक्ति के लिए ऐसे दमनात्मक माहौल में राससुन्दरी देवी का अपनी आत्मकथा लिखना कम महत्तवपूर्ण बात नहीं है। यह आत्मकथा कई दृष्टियों से महत्तवपूर्ण है। सबसे बड़ा आकर्षण तो यही है कि यह एक स्त्री द्वारा लिखी गई आत्मकथा है। स्त्री का लेखन पुरुषों के लिए न सिर्फ़ जिज्ञासा और कौतूहल का विषय होता है वरन् भय और चुनौती का भी। इसी भाव के साथ वे स्त्री के आत्मकथात्मक लेखन की तरफ प्रवृत्ता होते हैं। प्रशंसा और स्वीकार के साथ नहीं; क्योंकि स्त्र

हिन्दी के भाषाविद् स्त्रीभाषा कब पढाएँगे ?

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                       हिन्दी के भाषाविद् स्त्रीभाषा कब पढाएँगे ?    आज सारे भारत में उच्च शिक्षा के स्तर पर सेमेस्टर प्रणाली लागू करने की कवायद चल रही है। यू जी सी का दबाव है और दण्डानुशासन जनित भय भी कि लगभग हर विश्वविद्यालय का प्रशासन इसे लागू करने की प्रक्रिया आरंभ कर चुका है। इस प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है पाठ्यक्रम में बदलाव। अब तक का जो पाठ्यक्रम चला आया है , जिसे पढकर मेरी पीढी और मेरी माँ की पीढ़ी बडी हुई है ,उससे स्त्री की कोई छवि निर्मित नहीं होती। बारह चौदह वर्ष की पढाई करने के बाद अगर प्रश्न किया जाए कि हमने जो अध्ययन किया उसके आधार पर बताएँ कि स्त्री कैसी थी, उसका संसार कैसा था, वह कैसे सोचती थी तो उत्तर नकारात्मक होगा। न तो इतिहास, न भाषा का अध्ययन,   न खानापूर्ति के अलावा समाजशास्त्र स्त्री के बारे में कुछ बताता है।     समाज में पुरू षों की भूमिका वर्चस्व शा ली रूप में है। पुरू ष हमे शा ज्ञान, दर्शन और साहित्य के केन्द्र में रहे हैं। वे हमेशा से इस सामाजिक स्थिति में रहे हैं कि पुरू ष श्रेष्ठता का मिथ निर्मित कर सकें और इसे स्वीकार भी करवा सकें। इस झूठ क

मुसलमान विरोधी ग्लोबल मीडिया -1-

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फिलिस्तीन के साथ भूमंडलीय माध्यमों का रिश्ता बेहद जटिल एवं शत्रुतापूर्ण रहा है।कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिन पर ध्यान देने से शायद बात ज्यादा सफ़ाई से समझ में आ सकती है।ये तथ्य इजरायली माध्यम शोर्धकत्ताओं ने नबम्वर 2000 में प्रकाशित किए थे। शोर्धकत्ताओं ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष की खबर भेजने वाले संवाददाताओं का अध्ययन करने के बाद बताया कि इजरायल में 300 माध्यम संगठनों  के प्रतिनिधि इस संघर्ष की खबर देने के लिए नियुक्त किए गए हैं। इतनी बड़ी संख्या में संवाददाता किसी मध्य-पूर्व में अन्य जगह नियुक्त नहीं हैं। मिस्र में 120 विदेशी संवाददाता हैं।इनमें से दो-तिहाई पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका से आते हैं। इनमें ज्यादातर संवाददाता वैस्ट बैंक और गाजा पट्टी से अंग्रेजी में खबर देते हैं।चूंकि खबर देने वाले संवादाता इजरायल में रहकर खबर देते हैं यही वजह है कि इनकी खबरें इजरायली दृष्टिकोण से भरी होती हैं।इनमें अधिकांश संवाददाता यहूदी हैं।ये वर्षों से इजरायल में रह रहे हैं।औसतन प्रत्येक संवाददाता 10 वर्षों से इजरायल में रह रहा है।अनेक की इजरायली बीबियां हैं।अनेक स्थायी तौर पर ये काम कर रहे हैं।च

भाषा में स्त्री के अनुभव

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                      एन्द्रीने रीच ने लिखा है '' स्त्री संघर्ष   का समस्त इतिहास सदियों से चुप्पी में डूबा हुआ है। किसी भी स्त्रीवादी लेखिका के लिए सबसे बड़ी सांकृतिक बाधा यह आती है कि प्रत्येक स्त्रीवादी लेखन किसी शू न्य से पैदा हुआ जान पड़ता है ; जैसे कि हममें से प्रत्येक बिना किसी ऐतिहासिक अतीत , संदर्भयुक्त वर्तमान के जीते , सोचते और काम करते हैं। यह उन कई रास्तों में से एक है जिनमें स्त्री के काम को विच्छिन्न , अनियमित और अपनी किसी भी परंपरा से यतीम मान लिया जाता है। ''     ऐतिहासिक तौर पर स्त्रियाँ किसी भी तरह के सांस्कृतिक उत्पादन से बाहर रखी गईं। भा षा संस्कृति का सबसे अहम हिस्सा है। चूँकि स्त्रियाँ उत्पादन में शा मिल न होकर सिर्फ उसकी प्रयोगकर्ता हैं इसलिए वे अपने सांकेतिक अर्थ को प्रमुखता देने में असमर्थ हैं। स्त्री और पुरू ष दोनों ही अर्थ उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं लेकिन स्त्रियाँ इस स्थिति में नहीं रहीं कि उनके द्वारा दिए गए अर्थ को सामाजिक तौर पर मान्यता मिल सके। वे कभी सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा नहीं रहीं , संस्कृति की निर्मात्री भी नहीं र

सीरियल में मातहत भाव

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सीरियल , अखबार , विज्ञापन आदि संस्कार विकसित करते हैं। देखना चाहिए कि इनके द्वारा किन चीजों को वैधता प्रदान की जा रही है ? स्त्री की कुटिलता , दुष्टता या चालाकी महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है उसका मातहत भाव। उसका समर्पणकारी भाव। इन दो चीजों के अंतर्गत स्त्री की सारी दुनिया निर्मित की जा रही है। स्टार के जितने लोकप्रिय सीरियल हैं जैसे ' राजा की आएगी बारात ', ' बिदाई : सपना बाबुल का ', ' मितवा फूल कमल के ' आदि में स्त्री के मातहत और समर्पणकारी भाव को वैध बनाया जा रहा है। ' राजा की आएगी बारात ' की नायिका रानी के साथ साथ इस धारावाहिक के सभी स्त्री पात्र निष्क्रिय और अनुत्पादक चरित्र हैं। उनका कोई निजी स्पेश नहीं है। पति या मालिक के इर्द-गिर्द उनका संसार घूमता है। मानों वे पुरूष चरित्रों के आराम का सामान मात्र हों। किसी चरित्र में कोई विकास नहीं। स्टिीरियोटाईप ये स्त्री पात्र सिर्फ अनुकरण करती हैं। अनुगामी भाव इनका मुख्य भाव है। इनकी अपने बीच की दुनिया कुटिलता , क्षुद्रता , छल , प्रपंच से भरी हुई है। वह भी किसी बड़े उद्देश्य के लिए नहीं विशिष्ट पुरूष या

लोकप्रिय हिन्दी सीरियल कितने परिवर्तनकामी ?

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टेलीविजन पर दिखाए जानेवाले कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा समाचार देखा जाता है या फिर टेलीविजन धारावाहिक। ये दोनों टेलीविजन के सबसे लोकप्रिय विधारूप हैं। सबसे ज्यादा दर्शक संख्या को खींचने की ताकत इनमें है। धारावाहिक में एक कहानी चलती है जो अनंतरूपा होती है। इसी तरह से समाचार में भी सूचना पहले स्टोरी बनती है फिर खबर। खबर का ज्यादा से ज्यादा स्टोरी बनना सीरियल की विधागत लोकप्रियता का द्योतक है।     ऐसी खबरें जिनके दृश्य मौजूद नहीं होते चाहे वे संगीन हत्या , बलात्कार या अन्य आपराधिक खबरें हों या कोई राजनीतिक अपराध से जुड़ी खबर हो , इनका नाटय रूपान्तर दिखाना भी खबर का धारावाहिकीकरण है जिसमें कहानी की भूख आम तौर पर पूरी करने की कोशिश की जाती है। कहानी के सभी आवश्यक तत्व भय , सनसनी , रोचकता , उत्सुकता , समाहार सब कुछ उसमें शामिल होता है। कहने का अर्थ यह है कि टेलीविजन के जितने विधारूप मौजूद हैं उसमें दो विधारूपों में जबर्दस्त प्रतिद्वन्द्विता है। जो चीज दर्शक और माध्यम अध्येता आसानी से महसूस कर सकता है कि इसमें बढ़त सीरियल की है।   सबसे ज्यादा स्पॉन्सरशिप इन्हीं दो कार्यक्रमों को मिलते ह