tag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post4339560621856242967..comments2024-03-11T21:02:57.856-07:00Comments on नई रोशनी: शाहरूख एक्टिविस्ट नहीं हैं राजदीप सरदेसाईsudha singhhttp://www.blogger.com/profile/16412257028355059190noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-49274951621663213102011-01-01T21:10:28.243-08:002011-01-01T21:10:28.243-08:00उन्होंने अपने पड़ोसी देश के साथ सौहार्द्रपूर्ण संब...<i>उन्होंने अपने पड़ोसी देश के साथ <b>सौहार्द्रपूर्ण </b>संबंध की बात कही है</i><br /><br /><a href="http://feedproxy.google.com/~r/shabdavali/~3/igIIxSORzW8/blog-post_05.html" rel="nofollow">आखिर क्या है ये ‘सौहार्द्र’ ?</a>सोनूhttps://www.blogger.com/profile/15174056220932402176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-21198444466737093972010-03-26T13:22:09.021-07:002010-03-26T13:22:09.021-07:00प्रणाम!
आपकी यह बात समझने और मानने लायक है ...प्रणाम!<br /> आपकी यह बात समझने और मानने लायक है कि भारतीय हिंदी सिनेमा में शाहरूख खान वो शख्सियत हैं जो बिना किसी प्रकार के विवाद के भी अपनी फिल्मों को अपने और कहानी के दम पर हिट करवा सकतें हैं। मसलन, उनकी ज्यादातर फिल्में जिस तरह से बिना किसी विवाद के आई हैं और दर्शकों पर गानों के माध्यम से भी प्रभाव छोडी हैं, वह काबिले गौर है। अगर इस तरह से देखें तो यह बात कहीं से भी सच नहीं लगती है और शायद इसीलिए पचती भी नहीं है कि शाहरूख और शिवसेना की कोई सांठ-गांठ थी 'माई नेम इज़ खान' को ज्यादा से ज्यादा लोकप्रिय बनाने को लेकर। शाहरूख कितने बडे एक्टर हैं या वो कितने बडे देशभक्त हैं या वो हिंदुस्तान की बेहतरी के लिए कितने लकी हैं या वो कितने बडे प्रोफेशनल हैं, मैं यहां ना तो यह बताना चाहता हूं और ना ही मैं किसी प्रकार से उनका बचाव करने में मुझे कोई दिलचस्पी है। मुझे दरअसल इस विवाद में कुछ और ही नज़र आता है और वह है शिवसेना की महज सस्ती लोकप्रियता पाने की घटिया महत्वाकांक्षा। मुंबई में पहले लोकसभा और फिर विधानसभा की शर्मनाक हार के बाद शिवसेना को बस ऐसे मौके चाहिए जिसके बदौलत वह अगले चुनाव तक सक्रिय रह सके। उसके कार्यकर्ताओं में कहीं कोई जंग ना लग जाए कि अगले चुनाव में भी उसकी कुछ ऐसी ही दुर्गति हो। इसीलिए वह इस तरह के बवालों में उलझी रहती है। लेकिन इस बार उसका दांव कुछ उलटा पड गया। हाल के दिनों में उसने जिन दो बडी चीजों का विरोध किया वह विशुद्ध रूप से बडी जनसंख्या के मनोरंजन का साधन था। उसने इस बडी जनसंख्या के मनोरंजन के साधनों पर हाथ लगाने की कोशिश की। चाहे वह आई.पी.एल. हो या सिनेमा (माई नेम इज़ खान)। इसीलिए अन्य जगहों के साथ मुंबई वालों ने भी उसकी इस तोड-फोड की चेतना से भरी राष्ट्रीयता की भावना को कोई महत्व नहीं दिया और वही किया जो उनसे अपेक्षा थी। इसीलिए वह बहुत ही बिखरी-बिखरी सी नज़र आई और क्रिकेट के मामले में तो अंततः समझौता भी कर गई। तो यह है शिवसेना, जिसकी राष्ट्रीयता पर अगर प्रश्न चिन्ह लगाया जाए तो शायद कुछ सार्थक कार्य होगा। वरना लिखने और बस लिखने को तो बहुत कुछ है...।<br />धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, एम.फिल.(हिंदी), दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली - 09धर्मेन्द्र प्रताप सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08265897088051969148noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-81146445551364974552010-02-12T06:56:51.988-08:002010-02-12T06:56:51.988-08:00शाहरुख ने बिल्कुल सही स्टैण्ड लिया। कारण जो भी उसक...शाहरुख ने बिल्कुल सही स्टैण्ड लिया। कारण जो भी उसका परिणाम भला रहा। शिसेना की गुण्डागर्दी का भय खत्म रकने में उनकी भी भूमिका है। शाहरुख के कारण यह 'मुद्दा' बन सका जो कि इसे पहले बन जाना चाहिए था।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-88191476390103174222010-02-10T02:39:39.978-08:002010-02-10T02:39:39.978-08:00नई रोशनी... आपका ये लेख कोई नई रोशनी नहीं दिखाता.....नई रोशनी... आपका ये लेख कोई नई रोशनी नहीं दिखाता... आपने लिखा है कि शाहरूख एक अभिनेता हैं नेता नहीं... आपको ये समझ लेना चाहिए कि पर्दे के पीछे की सच्चाई क्या है... आपने ग़ौर किया कि शिवसेना ने पहले शाहरूख का विरोध किया... फिर पीछे हट गई... और फिर चंद घंटों बाद विवाद को लेकर बेहद आक्रामक तरीके से सड़कों पर उतर आई... और इस बीच करन जौहर इस बारे में मातोश्री नहीं पहुंचे... जबकि वेक अप सिड के वक़्त उन्होने बाला साहेब की चौखट पर मत्था टेका था... अगर इन चीज़ों को समझा जाए तो साफ हो जाता है कि जो विवाद आज सड़कों पर है... वो माइ नेम इज़ ख़ान और सेना की मिलीभगत का नतीजा है... और ये सब कुछ फिल्म की पब्लिसिटी के लिए किया जा रहा है... और शाहरूख खान तो वो शख्सियत हैं जिन्होने विवादों से ही पैसा और पॉपुलैरिटी बनानी सिखी है... ज़रा पीछे चलिए तो 15 अगस्त 2009 को भी अमेरिका से जो विवाद चला था.... वो पब्लिसिटी की तरफ ही इशारा करता है... सब कुछ विवादों में चल रहा है... यहां उनकी फिल्म को अगर इतना नुकसान दिख रहा है तो वे दुबई क्यों चले गए... दुबई में प्रिमियर करने की वजह यही है कि शाहरूख के लिए और उनकी फिल्मों के लिए ओवरसीज़ में एक बड़ा मार्केट है.. तभी तो मुंबई की 25 फीसदी कमाई छोड़कर वे उससे कहीं ज़्यादा कमाने बाहर चले गए... वैसे भी उन्हे पता है कि ये विवाद उनको फायदा ही देनेवाला है... इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आपके इस लेख पर एक फिल्म नहीं देखनेवाला भी कमेंट कर जाता है...Madhawhttps://www.blogger.com/profile/12886909791688014635noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-61249702655136986292010-02-09T22:34:23.418-08:002010-02-09T22:34:23.418-08:00में आपके ब्लाग पोस्ट को निरंतर फालो कर रहा हूँ. शा...में आपके ब्लाग पोस्ट को निरंतर फालो कर रहा हूँ. शाहरुख ख़ान का आपने अच्छा बचाव किया है. दुर्भाग्यवश में सिनेमा नहीं देखता हूँ. इस कारण मेरे अंदर फिल्मी हस्तियों के प्रति सहानुभूति नहीं पैदा हो पाती है. में इन्हें रोल माडल नहीं मानता हूँ . फिर भी संविधान की ओर से शाहरुख ख़ान को यह हक मिला हुआ है कि वह अपनी बात बेधड़क कह सकें. इस देश में पाकिस्तान को लेकर एक शंका रहती है. हमारी ओर से पाकिस्तान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के असंख्य कोशिशों के बदले में हमें पाकिस्तान की ओर से हमेशा युद्ध झेलना पड़ा, और अब प्रायोजित आतंकवाद के रूप में छद्म युद्ध चालू है. जब तक जिहाद मौजूद है, पाकिस्तान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित कर पाना संभव नहीं लगता. वैसे आपका लेख शाहरुख ख़ान के बारे में कम, फासीवाद के खिलाफ ज़्यादा है. आपने खूब जम के अपनी भढ़ास निकाली है.Dr S Shankar Singhhttps://www.blogger.com/profile/12453848699147237535noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3404568317288796775.post-88298056119290461622010-02-09T08:17:52.179-08:002010-02-09T08:17:52.179-08:00शाहरूख खान को पूरा हक है कि अपनी फिल्म का चाहे जैस...शाहरूख खान को पूरा हक है कि अपनी फिल्म का चाहे जैसे प्रचार प्रसार करें, और साथ ही वह यह चाहते हैं कि लोग निर्भय होकर थियेटरों और मल्टीप्लेक्स में आये...वाजिब बात। फिल्म माइनेम इज किंग खान के अंदर देखने को क्या है यह तो 12 फरवरी को पता चलेगा। आप अभी से इसका महिमामंडन करने पर क्यों तुली हैं...शिवसेना इस फिल्म के कंटेंट को लेकर बवाल नहीं कर रहा है, वह शाहरूख खान के पाकिस्तान प्रेम को लेकर हमलावर मूड में है...और यही उसकी शैली भी है...आस्ट्रेलिया में भारतीयों को साथ जो मार-पीट हो रही है, उस पर भी शिवसेना का रूख पूरी तरह से स्पष्ट है...बाकि लोग तो कागजी निंदा कर रहे हैं। शाहरूख अपने आप को लार्जर दैन लाइफ के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं, बेशक वे करते रहें,एक्टिविस्ट भी बन जाये, उनकी मर्जी। ...Alok Nandanhttps://www.blogger.com/profile/08283190649809379160noreply@blogger.com