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शिष्ट भाषा के चालू मुहावरे

    स्त्री के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक भेद-भाव का बड़ा क्षेत्र भाषा है। आम तौर पर स्त्री के साथ किए गए और किए जा रहे अन्याय और चालाकियों को उजागर करते हुए विद्वानों ने लोकोक्तियाँ, मुहावरों और गालियों का उदाहरण दिया है। यानि स्त्री के साथ किए जा रहे या हुए सामाजिक-सांस्कृतिक भेद-भाव का सबसे मूर्त उदाहरण लोकभाषा को बतलाया है। यह बहुत बड़ी चालाकी है। लोकभाषा की तरफ उंगली उठाने के पहले यह नहीं भूलना चाहिए कि लोक में प्रचलित विश्वास और मान्यताओं की पुष्टि प्रदान करनेवाला और वैध ठहरानेवाला शिष्ट समाज ही होता है। सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया में शिष्ट समाज के थोथे नियमों को इस प्रक्रिया में शामिल जाति और समुदाय अपना लेते हैं।   स्त्रियों के लिए भाषिक अपमान के सारे मुहावरे लोक में खोजकर निर्णय सुनाना ग़लत है। हिन्दी के शिष्ट बुद्धिजीवियों ने लोक से जुडने का बड़ा दम भरा है। उन्हीं से पूछा जाना चाहिए कि लोक की यह बीमारी भी उनके यहाँ है क्या ?क्या शिष्ट साहित्य में बिना सीधे-सीधे गाली दिए स्त्रियों के लिए हीनतामूलक संदर्भों का निर्माण नहीं किया गया ?जब रामचन्द्र शुक्ल रीतिकाल की नायिकाभेद वाल