बहिणाबाई चौधरी- मैं अब अपने लिए-
बहिणाबाई चौधरी (1880-1905) महाराष्ट्र के जलगाँव जिले की कपास की खेती करनेवाली किसान स्त्री थी। बहिणाबाई की कविताएँ मूलतः किसानी के श्रम के दौरान लिखी गई कविताएँ हैं। भारत के अन्य हिस्सों में स्त्रियों की रचनात्मकता उनके जीवन के कार्यव्यापार के बीच से फूटी है , बहिणाबाई की कविताएँ भी उसी तरह से रची गई हैं। बहिणाबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं लेकिन जीवन के गाढ़े अनुभव के दर्शन उनके गीतों में बिखरे हैं। मराठी के ओवी छंद में खानदेसी और वर्हाडी बोलियों में बहिनीबाई के गीत मिलते हैं। जो चीज ज्यादा आकर्षित करती है वह है परंपरा और रूढ़ियों के बीच से जगह बनाने की कोशिश। जीवन के प्रति ललक। भाग्य से संघर्ष की इच्छा। इस कविता में एक विधवा स्त्री की तकलीफ और परिस्थितियों से संघर्ष के साथ- साथ जीवन को सुंदर बनाने की इच्छा शामिल है। मैं अब अपने लिए मेरी आँखों से बहनेवाले आंसूओं का अंत नहीं। बहुत रो चुकी हूँ आंसू सूख चुके हैं केवल सिसकियाँ बाकि हैं। आं