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Showing posts from January, 2010

बहिणाबाई चौधरी- मैं अब अपने लिए-

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   बहिणाबाई चौधरी (1880-1905) महाराष्ट्र के जलगाँव जिले की कपास की खेती करनेवाली किसान स्त्री थी। बहिणाबाई की कविताएँ मूलतः किसानी के श्रम के दौरान लिखी गई कविताएँ हैं। भारत के अन्य हिस्सों में स्त्रियों की रचनात्मकता उनके जीवन के कार्यव्यापार के बीच से फूटी है , बहिणाबाई की कविताएँ भी उसी तरह से रची गई हैं। बहिणाबाई पढ़ी-लिखी नहीं थीं लेकिन जीवन के गाढ़े अनुभव के दर्शन उनके गीतों में बिखरे हैं। मराठी के ओवी छंद में खानदेसी और वर्हाडी बोलियों में बहिनीबाई के गीत मिलते हैं। जो चीज ज्यादा आकर्षित करती है वह है परंपरा और रूढ़ियों के बीच से जगह बनाने की कोशिश। जीवन के प्रति ललक। भाग्य से संघर्ष की इच्छा। इस कविता में एक विधवा स्त्री की तकलीफ और परिस्थितियों से संघर्ष के साथ- साथ जीवन को सुंदर बनाने की इच्छा शामिल है।                                               मैं अब अपने लिए                     मेरी आँखों से बहनेवाले आंसूओं का अंत नहीं।                     बहुत रो चुकी हूँ                     आंसू सूख चुके हैं                     केवल सिसकियाँ बाकि हैं।                     आं

युद्ध पत्रकारिता के विकल्प की तलाश में - जगदीश्वर चतुर्वेदी

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                                                        ( गाजा में इस्राइल के अवैध कब्जे के खिलाफ फिलीस्तीनी कलाकारों की प्रतिवादी कला) ---------------------------------------------------------------------------------------------- संकट की अवस्था में मीडिया को कैसे देखें ? यह सवाल सबसे महत्व का है। संकट की अवस्था में साधारण लोग संशय और भ्रम के शिकार होते हैं।ऐसी स्थिति में साधारण आदमी का मीडिया पर विश्वास नहीं होता और न स्वयं पर ही भरोसा होता है। क्षेत्रीय युध्द का कवरेज इसे क्षेत्रीय युध्द नहीं रहने देता , बल्कि विश्वव्यापी मुद्दा बना देता है।इस तरह के युध्द के कवरेज में लगातार विध्वंस और मौत के दृश्य बार बार आते रहे हैं , ये दृश्य हमें बार-बार ज्यादा से ज्यादा व्याख्या की ओर ले जाते हैं किंतु टीवी पर व्याख्याकारों का अकाल पड़ा है , सीएनएन और बीबीसी जैसे माध्यमों पर जो व्याख्याकार आ रहे हैं वे सैन्य विशेषज्ञ हैं , भू.पू. अमेरिकी-इस्राइली सैनिक अधिकारी हैं या फिर किसी कंजरवेटिव रिसर्च संगठन के थिंक टैंक हैं।       समाचार चैनलों में इन दिनों सनसनीखेज खबर बनाने या फिर खबर छपान

अमरीकी सैन्य उद्योग का मध्यपूर्व में सूचना वर्चस्व- जगदीश्वर चतुर्वेदी

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                                                                                          अमेरिकी साम्राज्यवाद का उत्तर आधुनिक मंत्र है सूचना वर्चस्व बनाए रखो। विरोधी के सूचना तंत्र को नष्ट करो , अप्रासंगिक बनाओ। इस मंत्र का मध्यपूर्व में भी इस्तेमाल किया जा रहा है।जो मीडिया साथ नहीं है , उसके साथ शत्रुतापूर्ण बर्ताव करना , दण्डित करना , उसे भी आतंकवाद विरोधी मुहिम के निशाने पर लाना। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मीडिया को चौथा मोर्चा घोषित कर दिया गया है। मीडिया के खिलाफ भी युध्द की घोषणा कर दी गयी है। नयी परिस्थितियों में संवाददाता , चैनल , अखबार आदि सभी को निशाना बनाया जा रहा है। मीडिया को वस्तुत : युध्द का उपकरण घोषित कर दिया गया है। यह विश्वस्तर पर चल रही अमेरिका की ' आतंकविरोधी मुहिम ' का वैध निशाना है।सेना का वैध लक्ष्य है।      इस्राइली विस्तारवाद और अमेरिकी अंध आक्रामकता का आलम यह है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर इस्राइल के बारे में किसी भी किस्म की आलोचना के लिए कोई जगह नहीं है। स्थिति इस कदर बदतर है कि इस्राइल की आलोचना को कानून का उल्लंघन माना

फिलीस्तीन मुक्ति सप्ताह का आज आखिरी दिन- मध्यपूर्व के बारे में मीडिया में इस्राइली मिथ- जगदीश्वर चतुर्वेदी

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(इस्राइल हमले के प्रतिवाद में बनायी फिलीस्तीनी चित्रकार की पेंटिंग)                                                           इस्राइली सेना के बारे में पश्चिमी मीडिया यह मिथ प्रचारित कर रहा है कि वह कभी गलती नहीं कर सकता। इस्राइली हमेशा जीतेंगे। इस्राइली सेना इस्राइली जनता की रक्षा करेगी। इस्राइली चैनलों में ' हम ' की केटेगरी के तहत पश्चिम की प्रशंसा और पश्चिम के साथ इस्राइली रिश्ते के साथ जोड़कर पेश किया जा रहा है। इस्राइल के द्वारा ' अन्य ' या पराए की केटेगरी में समूचे अरब जगत को पेश किया जा रहा है। फिलीस्तीनी और अरब जनता को ' न्यूसेंस ' और आतंकी के रूप में पेश किया जा रहा है। इस्राइली प्रचार में कहा जा रहा है इस्राइल का लक्ष्य है ' न्यूसेंस ' और आतंकवाद का विरोध करना , उसका सफाया करना।ऐसा करने में किसी भी किस्म के पश्चाताप करने की जरूरत नहीं है। अरब जनता को शक्लविहीन और आतंकी बनाने में पश्चिमी मीडिया का बड़ा हाथ है , खासकर चैनलों का।       मीडिया आसानी से यह बात भूलता जा रहा है कि इस्राइली सैनिकों के द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर निरंतर अमानवीय अ

फिलीस्तीनी कलाकारों का सर्जनात्मक प्रतिवाद

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छब्बीस जनवरी

                              बीस साल पहले                              छब्बीस जनवरी                              नाम हुआ करता था,                              बिना अलसाए                              अल्लसुबह                               उठने का।                              धुली सफ्फाक                              स्कूली पोशाकों में                              झण्डोत्तोलन और                              विजयी विश्व गाने के                              उत्साह में स्कूल भागने का।                              बूँदी, नमकीन और देशभक्ति के गीतों का।                               छब्बीस जनवरी दो हजार दस-                              ठण्ड और कुहासे में हमें                              इंतजार है                              टी वी पर घट सकनेवाली                              आतंकी घटना का।                              सरकार करेगी साबित                              अपनी ताकत अपनी जरूरत।                              सैन्यशक्ति प्रदर्शन की ट्यूनिंग के साथ