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Showing posts from 2010

क्या औरत को माँ बनने के लिए प्रोत्साहन की ज़रूरत है ?

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       यूरोपीय समुदाय स्त्रियों के लिए मातृत्व के अवकाश को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। यूरोप में अभी चौदह हफ्ते का मातृत्व अवकाश स्त्रियों को मिला हुआ है। इसे बढ़ाकर इक्कीस हफ्ते करने पर यूरोपीय संसद विचार कर रही है। क्या इसे स्त्री आंदोलनों की सफलता माना जाए ? या फिर स्त्री आंदोलनों के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि ? अभी इस प्रस्ताव पर विचार चल रहा है , इसके पक्ष – विपक्ष में तर्क दिए जा रहे हैं। इस विषय में कुछ भी कहने के पहले मैं कह दूँ कि व्यक्तिगत तौर पर मैं इस प्रस्ताव के पक्ष में हूँ और कोई भी स्त्री जिसके अंदर स्त्री की चेतना है वह इसके पक्ष में होगी। इस प्रस्ताव के लाने के पक्ष – विपक्ष दोनों में तर्क दिए जा रहे हैं। जो पक्ष में हैं और जो इसका समर्थन कर रहे हैं उनका तर्क है कि स्त्रियों के लिए मातृत्व अवकाश बढ़ाने पर स्त्रियाँ गर्भाधान के लिए आकर्षित होंगी। उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा। आज स्त्रियाँ बाहर काम कर रही हैं और उन्हें बाहर के काम से गर्भाधान के समय अगर अवकाश मिलेगा तो वे प्रोत्साहित होंगी। यह समाज के लिए अच्छा होगा, देश के लिए अच्छा होगा, देश की जनसंख्या संतुलन के लिए अच्छ

औरत को नंगा करके किसे सुख मिलता है ?

अभी उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले के करहिया गाँव में जागेश्वरी नाम की महिला को डायन बता कर जीभ काट लेने की घटना पर ठीक से चर्चा भी नहीं हुई थी कि पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक सोलह साल की नाबालिग लड़की को नंगा करके पूरे गाँव में 'सजा' के तौर पर घुमाने की घटना सामने आई है (इंडिया टी वी 8 अगस्त 2010)। लड़की का कसूर प्यार करना बताया जाता है। पूरे दृश्य में प्रेमी कहीं नहीं फ्रेम में आता। बेबस भागती नंगी लड़की, ढोल -नगाड़े बजाते गाँववाले जिनमें महिलाएँ, पुरूष और बच्चे सभी हैं दिखाई दे रहे हैं , ये सब जंगल में हांका करती शिकारियों की टोल और निरीह पशु का दृश्य तैयार करते हैं। भागती हुई नंगी लड़की को एक पुरूष पकड़कर बदतमीजी कर रहा है तब भी दृश्य में कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दे दे रही। इंडिया टी वी दावा कर रहा है कि उसकी ख़बर का असर हुआ है और कुछ लोगों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को वीडियो फुटेज दिखाकर बाइट लेने की कोशिश कर रहा है। वे नेता जो वामपंथी रूझान के हैं सिर्फ ख़बर सुनकर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते और वे नेता जिनका वामपंथ से बैर है , जो वाम को कोसने का कोई भी मौका न

शिष्ट भाषा के चालू मुहावरे

    स्त्री के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक भेद-भाव का बड़ा क्षेत्र भाषा है। आम तौर पर स्त्री के साथ किए गए और किए जा रहे अन्याय और चालाकियों को उजागर करते हुए विद्वानों ने लोकोक्तियाँ, मुहावरों और गालियों का उदाहरण दिया है। यानि स्त्री के साथ किए जा रहे या हुए सामाजिक-सांस्कृतिक भेद-भाव का सबसे मूर्त उदाहरण लोकभाषा को बतलाया है। यह बहुत बड़ी चालाकी है। लोकभाषा की तरफ उंगली उठाने के पहले यह नहीं भूलना चाहिए कि लोक में प्रचलित विश्वास और मान्यताओं की पुष्टि प्रदान करनेवाला और वैध ठहरानेवाला शिष्ट समाज ही होता है। सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया में शिष्ट समाज के थोथे नियमों को इस प्रक्रिया में शामिल जाति और समुदाय अपना लेते हैं।   स्त्रियों के लिए भाषिक अपमान के सारे मुहावरे लोक में खोजकर निर्णय सुनाना ग़लत है। हिन्दी के शिष्ट बुद्धिजीवियों ने लोक से जुडने का बड़ा दम भरा है। उन्हीं से पूछा जाना चाहिए कि लोक की यह बीमारी भी उनके यहाँ है क्या ?क्या शिष्ट साहित्य में बिना सीधे-सीधे गाली दिए स्त्रियों के लिए हीनतामूलक संदर्भों का निर्माण नहीं किया गया ?जब रामचन्द्र शुक्ल रीतिकाल की नायिकाभेद वाल

सांप्रदायिकता फासीवाद का स्त्री प्रत्युत्तर -1-

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       आधुनिककाल के औपनिवेशिक भारत में सबसे ज्यादा राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मुद्दा फासीवाद और सांप्रदायिकता ही रहा है। आज भी इसका राजनीतिक तौर पर विकृत रूप अलग-अलग शक्लों में दिखाई दे रहा है। फासीवादी ताकतों ने सारे विश्व में मानवता के लिए घृणा की फाँस को तैयार किया है। समूचे विश्व को युद्ध के खेमों में बदल दिया है। इसी की पिछलग्गू सांप्रदायिक चेतना का जहर फैलानेवाली शक्तियाँ हैं। सामाजिक विभाजन और घृणा इनका केन्द्रीय एजेण्डा है। विशेषत: औपनिवेशिक देशों में साम्राज्यवादी शक्तियों ने नस्लवाद, जातीय घृणा , लैंगिक भेद-भाव आदि को सचेत रूप से बढ़ावा दिया।      आज सांप्रदायिकता का दायरा व्यक्तिगत संबंधों से लेकर स्थानीय, संस्थागत और राश्ट्रीय राजनीति तक फैला हुआ है जिसका विस्फोट सांप्रदायिक दंगों में दिखाई देता है। सांप्रदायिकता के लिए आज सामाजिक और राजनीतिक संबंधों का पूरा ताना-बाना मौजूद है जिनके ऊपर सांप्रदायिक और फासीवादी शक्तियों की राजनीति चल रही है। यह न केवल सामाजिक चेतना के स्तर को प्रदर्शित करता है बल्कि पॉवर पॉलिटिक्स में वर्चस्व का औजार भी है , केवल राजनीतिक सत्ता हासिल करने के

भारत के बाल रंगमंच की महान रंगकर्मी रेखा जैन नहीं रहीं

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(प्रसिद्ध रंगकर्मी स्व.रेखा जैनः 18सितम्बर 1923-22 अप्रैल 2010 )              हिन्दी रंगमंच की प्रसिद्ध हस्ती रेखा जैन का कल निधन हो गया। वे 84 साल की थीं। रेखा जैन के निधन से भारत के बाल रंगमंच के एक युग का अंत हो गया है।   रेखाजी का 28सितम्बर 1923 को जन्म हुआ था। रेखा जैन के रंगकर्मी व्यक्तित्व के निर्माण में ‘इप्टा’ की केन्द्रीय भूमिका थी। रेखाजी की 12 साल की आयु में नेमिचंद जैन के साथ शादी हुई। नेमिचंद जैन हिन्दी के बड़े रचनाकार और रंगकर्मी थे। उनकी पुत्री कीर्ति जैन भी रंगमंच से जुड़ी हैं और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में निदेशक रह चुकी हैं। नेमीजी ने रेखा जी को पढ़ाया,लिखाया,नृत्य और रंगकर्म की शिक्षा दिलवायी। वे लंबे समय तक ‘इप्टा’ के केन्द्रीय ग्रुप की सदस्य रहीं। नेमीजी के अलावा शंभु मित्र और शांतिवर्धन से भी उन्होंने रंगकर्म,संगीत आदि की शिक्षा प्राप्त की।     रेखाजी का जन्म रुढ़िवादी वातावरण में हुआ था। इस रुढ़िवादी वातावरण से निकलकर उन्होंने जगह-जगह नाटक किए और स्वाधीनता संग्राम और प्रगतिशील आंदोलन में हिस्सा लिया। उनका भारत के बाल रंगमंच के साथ 50 साल से गहरा संबंध था।   उन्

भाषा में वर्चस्व निर्माण की प्रक्रिया

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अमूमन भा षा का वर्ग या भा षा का स्त्रीबोध या स्त्री-भा षा जैसे पद-बंध सुनते ही ऐसा मालूम पड़ता है कि भा षा के प्रचलित विमर्श  के स्थिर जल में कंकड़ फेंक दिया हो। भा षा में वर्ग और स्त्री बोध या स्त्री-भा षा जैसे विभाजन क्यों। भा षा तो बहता नीर है , अनंत है , बह्मतुल्य है उसमें विभेद- वर्गीकरण कैसा ? पर यह वर्गीकरण भा षा के भीतर ही मौजूद था , है। भा षा को वैयाकरणिक प्रणाली से नियमित करने और विज्ञान के पद तक पहुँचाने में वर्चस्व शा ली पुरु ष तबके का हाथ रहा है। इन्होंने भा षा के नियम , विधान सबकुछ अपने को केन्द्र में रखकर तैयार किए। भा षा का वर्ग या मजदूरों या स्त्रियों की भा षा का अर्थ समाज में बोली जानेवाली भा षा (जो कि पुरु ष भा षा है) से एकदम भिन्न कोई भा षा है , ऐसा नहीं है। भा षा वही है जो समाज में प्रचलित है लेकिन उसके श ब्द , रूप आदि में स्त्री का संसार शा मिल होगा जो समस्त स्त्री जाति के अनुभव और चिंतन का संसार होगा।  भा षा के विकास में वर्गों की भूमिका होती है लेकिन अलग-अलग वर्गों की अलग-अलग भा षा नहीं होती। रामविलास श र्मा के अनुसार '' भा षा समूच

भाषा में वर्गहीनता और लिंगविहीनता का छद्म

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भा षा का प्रयोग और भा षि क संकल्पनाएं वर्गाधारित रही हैं। भा षा को लेकर जितनी भी धारणाएं है उन सबमें एक आम राय है कि भा षा निरपेक्ष नहीं होती। बोलना कभी भी निरपेक्ष नहीं रहा है। भा षि क व्यवहार उदासीनता का व्यवहार नहीं हुआ करता न   ही भाषा केवल सम्प्रे ष ण का माध्यम है। भा षा की भूमिका इससे कहीं बड़ी है। भा षा वर्चस्व के संबंधों के सम्प्रे ष ण का भी माध्यम है। ये वर्चस्व के संबंध वर्ग , लिंग , नस्ल , रा ष्ट्र आदि कई स्तरों पर अभिव्यक्त होते हैं। इसी कारण वि श्व की प्रत्येक भा षा में साहित्य के आरंभिक झगड़े भा षा के झगड़े हैं। और ऐसा भी नहीं है कि ये झगड़े अंतिम नि ष्कर्ष पर पहुँच चुके हों बल्कि किसी भी नए विचार के संदर्भ में भा षा का विवाद उठ खड़ा होता है। वह विचार साहित्यिक हो , सांस्कृतिक या राजनीतिक सभी का निपटारा भा षा के अंतर्गत होता है।     भाषा को लेकर मार्क्स की धारणा है कि भाषा अधिरचना का हिस्सा होती है। उसमें परिवर्तन तब होता है जब आधार में परिवर्तन होता है। आधार की तुलना में यह परिवर्तन धीमी गति से होता है। भाषा में वर्ग का सवाल तब महत्वपूर्ण हुआ जब एंगेल्स ने

खिलाड़ी,बहू और मीडिया

                   सानिया स्टार टेनिस खिलाड़ी हैं। अपनी रैंकिंग में उतार-चढ़ाव के बावजूद सानिया मीडिया का पसंदीदा चेहरा रही हैं। सफल और स्टार खिलाड़ी के पीछे लगकर मीडिया उनकी छवि को अपने हक़ में भुनाता है। उन्हें इंसान से भगवान बनाने में सारी मेहनत लगा देता है। जितना बड़ा आख्यान बना सकता है बनाता है। सारी सकारात्मक स्टोरिज़ को बयान करने की कोशिश करता है। उनके कपड़े जूते , चड्ढी , बनियान सब महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इस महागाथा के निर्माण के पीछे मीडिया जनमनोविज्ञान की बहती गंगा में तो हाथ धो ही रहा होता है साथ ही भविष्य का एजेण्डा भी सेट कर रहा होता है। वह अपने लीन पीरियड के लिए मसाला जुटा रहा होता है।  मीडिया ने सानिया की स्टोरी का आगाज़ पॉजिटिव ख़बर से किया था , टी वी सीरियलों में चल रही शादी और गुड़ियों सी सजी-धजी दुल्हनों की भीड़ में असली दुल्हन बनने चली सानिया मिर्जा की कहानी सुनाई गई। फिर अचानक शादी में विघ्न पैदा हुआ। जैसाकि सीरियली शादी में होता है। एक नया चरित्र आएशा का दाखिल होता है। बताया जाता है कि आएशा शोएब की पहली पत्नी है। उनके पास निकाहनामा है जिसे वो पाकिस्तानी मीडिया को

मुहब्बतवाली शादी

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      (सानिया मिर्जा )              सानिया मिर्जा शोएब मलिक से शादी करेंगी। यह खबर है पर इसने एक साथ ही  कई मसलों को जन्म दे दिया है। पड़ोसी देश के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंध के मुद्दे के साथ-साथ सानिया और शोएब के पिछली जिंदगी को खंगालने का काम शुरू हो चुका है। सानिया को सलाह और निर्देश देनेवालों की भरमार हो रही है। राजनीतिक क्षेत्र से सबसे ज्यादा बयानबाजी हुई। समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी के बयान से तो लगता नहीं कि वे किसी सभ्य नागरिक समाज का हिस्सा हैं। यह काम शिवसेना किया करती है, मसले को राष्ट्रीय रंग देकर कर भी रही है। पर समाजवादी पार्टी जैसे बढ़त लेने को तैयार बैठी है। अबु आजमी का कहना है कि- जहाँ शादी पहले लगी थी वहीं शादी करनी चाहिए। माँ बाप के कहने से शादी करनी चाहिए लेकिन ये मुहब्बत करनेवाले लोग हैं। पर मुझे यह पसंद नहीं कि सानिया पाकिस्तानी से शादी करें और दुबई में रहें तथा भारत के लिए खेलें। ध्यान रखें कि उनकी पार्टी के सुप्रीमो माननीय मुलायम सिंह ने महिला आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग की है। इस आधार पर वे महिला आरक्षण बिल का विरोध कर रहें हैं लेकिन विरोध करते हुए निहाय