शिक्षा का उद्देश्य सफल होना है या मनुष्य बनना

विद्या विनय देती है। यह संस्कृत साहित्य की पुरानी उक्ति है। विनयी होने का क्या अर्थ है ? गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की स्वप्नसंस्था 'विश्वभारती' में 'डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन' के लिए नाम दिया गया 'विनय भवन'। यहाँ स्नातक स्तर के बाद सभी अनुशासनों के छात्र-छात्राओं के लिए 'बैचलर ऑफ एजुकेशन' और 'मास्टर ऑफ एजुकेशन' की पढ़ाई होती है। स्नातक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्र-छात्राओं को जीवन के व्यवहारिक क्षेत्र में प्रवेश के योग्य माना गया। जीवन और शिक्षा में एकरूपता के लिए तैयार करने में विनय भवन की भूमिका मानी गई। लेकिन गुरूदेव की शिक्षा के सन्दर्भ में जो धारणा थी उससे आज की शिक्षानीति का कोई मेल नहीं। आज के 'शिक्षागुरूओं' ने विनय की परिभाषा इतनी दूर तक खींची है कि यह चाटुकार होना, लचीला होना , अनुगामी होना , विश्वास करना, मानना, सहनशील होना और न जाने क्या-क्या हो गया है। विद्या अर्जन का यह उद्देश्य नहीं होना चाहिए कि व्यववहारिक या तकनीकी कौशल हासिल करके जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढें। सफलता के कुछ टिप्स बन गए हैं जो सफल है वह ...