सलाम ममता

  लाखों की संख्या में आम जनता और और आगे आगे चलती ममता बनर्जी। बंगाल की असल नायिका। जी नहीं ये कोई फिल्मी दृश्य नहीं है।  जैसा कि आपने इधर की कई फिल्मों में देखा है। ये असल दृश्य है। ये ममता के बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथग्रहण के बाद बंगाल के प्रसिद्ध राइटर्स बिल्डिंग तक पैदल चल कर जाने का दृश्य है।


ये जनज्वार जनता की इच्छाओं और दबी हुई आत्मशक्ति का परिचायक है। ममता बनर्जी ने राजभवन से महाकरण तक की यात्रा पैदल तय कर इसी भाव को अभिव्यक्ति दी है। साथ ही ममता क्या घोषणाएं करेंगी मुख्यमंत्री होने के बाद ऐसी किसी ख़बर के आने के पहले ये ख़बर आई है कि ममता मुख्यमंत्री होने के बाद सबसे पहले एक बलात्कृत स्त्री से मिलेंगी। आप इसे लोकप्रिय स्टंट कह सकते हैं पर ये जन भावों की

अभिव्यक्ति है। एक महिला मुख्यमंत्री का सबसे पहले एक पीड़ित महिला से मिलने का कार्यक्रम स्त्री संवेदना और सह-अनुभूति का सुंदर नमूना है। ये उम्मीद हम ममता से ही कर सकते थे।

ममता की उपलब्धियां जन संघर्ष के साथ-साथ स्त्री संघर्ष का भी प्रेरणादायी उदाहरण है। ममता को किसी की विरासत नहीं मिली। किसी का वरद्हस्त भी नहीं मिला। राजनीतिक पायदान पर आगे बढ़ने के लिए ये अनिवार्य अर्हता है पर ममता ने इन सबको झुठलाते हुए न केवल अपने लक्ष्य को हासिल किया है बल्कि जन-जन के भावों को अभिव्यक्ति दी है। यहां तक कि इस बार के सहयोगी गठबंधन कांग्रेस की भी यह

स्थिति थी कि उसने ममता के साथ कई जगह चुनावी मंच साझा नहीं किया। पर ममता सारे प्रतिरोधों को पार कर गई।

ममता ने अपने अब तक के रवैय्ये के अनुसार ही पैदल चलकर महाकरण जाना तय किया। आखिरी समय तक पत्रकार और मीडियाकर्मी क़यास लगाते रहे कि वो पैदल जाएंगी या सरकारी कन्वॉय में गाड़ी से। बंगाल के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना है। असंख्य लोग उन्हें देखने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं और मीडिया कर्मी ये नहीं तय कर पा रहे कि वो वी आई पी लिफ्ट द्वारा अपने दफ्तर जाएंगी या सीढ़ियों से।

कैमरे को पता नहीं ऑब्जेक्ट कहां है। सीधा प्रसारण दिखा रहे चैनलों को भी ये नहीं पता था कि वे गाड़ी से नहीं, पैदल जाएंगी। अतः ʻसीधा प्रसारणʼ भी सीधे नहीं दिखा पाया कि ममता किस तरह चलकर जा रही हैं। क्योंकि कैमरे उस अनुसार नियोजित नहीं थे। यह अनियोजन ही जनता की और ममता की ताक़त है। कई जगह बैरिकेड टूट गए। राज भवन जहां हर समय 144 धारा रहती है वहां आज साधारण जनों की भीड़ देखी जा रही

है।

ये वही ममता हैं जिनको स्त्री नेत्री होने के कारण कई तरह से अपमानित किया गया। कई तरह के अपशब्द और दुष्प्रचार किए गए। राजनीति; ताक़त, वर्चस्व और जोर आजमाइश की जगह है। उसमें एक स्त्री का इस मुकाम पर पहुंचना बहुत बड़ी बात है। ममता का प्रतिपक्ष साधारण पार्टी नहीं है। एक संगठित, नियंत्रित और सुचालित पार्टी है। जिसका तीन दशक से ज्यादा बंगाल पर शासन रहा है। हारने के बाद भी जिसके

पास 42 प्रतिशत वोट है। ऐसे में ममता का न तो रास्ता आसान था और न ही चुनौतियां आसान हैं। पर इसमें कोई संदेह नहीं ममता की उपलब्धि बहुत बड़ी है! बंगाल जो सबसे जागरुक राज्य होने का दावा करता है, को पहली महिला मुख्यमंत्री चुनने में 54 वर्ष लग गए! कह सकते हैं पार्टियों ने विकल्प नहीं दिया था । पर जनता को जैसे ही विकल्प मिला जनता ने अपनी राय जाहिर कर दी। ममता ने प्रतिरोध का ही केवल

विकल्प नहीं तैयार किया बल्कि जेंडर का भी विकल्प तैयार किया है। राजनीति की दुनिया में स्त्री मुहावरों और प्रतिरोध की शक़्लें तभी तैयार हो सकती हैं जब महिला नेत्रियां अपने महिला होने की जिम्मेदारियों और दायित्वों को भी याद रखें। ममता की कैबिनेट बैठक की बाद की घोषणाओं की अभी अपेक्षा है। नेत्री के साथ-साथ घोषणाओं और कार्यों को भी खराद पर चढ़ना है। सलाम ममता! सलाम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री!

(20मई 2011 को बांग्ला चैनलों पर प्रसारण देखते हुए)



Comments

NAVNEET KUMAR said…
nishit roop se ye bangal ki janata ke liye ek bahut badi uplabdhi hai ,jo kam pichle 54 varso me nahi hua sambhav hai ab ho...par ye to aana wala waqt nirdharit karega.

Popular posts from this blog

कलिकथा वाया बाइपासः अलका सरावगी- सुधा सिंह

आत्मकथा का शिल्प और दलित-स्त्री आत्मकथाः दोहरा अभिशाप -सुधा सिंह

महादेवी वर्मा का स्‍त्रीवादी नजरि‍या