महादेवी का काव्य संसार कई मायनों में विशिष्ट और अनूठा है। विशेषत: उन जगहों पर जहाँ छायावाद के संदर्भ में निजता,अनुभूति ,स्व और सामाजिकता की बार-बार बात की जाती है। महादेवी छायावाद की सीमा में दाखिल होने वाली और उसमें अपनी जगह बनाने वाली एकमात्र कवियित्री थी। जो सबसे बाद में छायावाद की परिसीमा में आई और सबसे अंत तक रही, जब छायावादी शैली की कविता नहीं लिख सकीं तो कविता लिखने से ही अलविदा कह दिया। अन्य छायावादी कवियों की तरह वे प्रगतिवाद और दूसरी धारा की कविता-यात्रा में शामिल नहीं हुई। सन् 80 के दशक तक वह जीवित रहीं, लगातार सक्रिय रहीं, गद्य लेखन में लगातार सक्रिय रहीं किंतु कविता के संसार की ओर उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। कविता की खास शैली,विषयवस्तु को लेकर महादेवी की यह अत्यधिक संवेदनशीलता कई सवालों को उठाती है, हिन्दी आलोचना ने महादेवी की कविता और काव्य जगत को लेकर कोई गंभीर रूख नहीं दिखाया है। महादेवी की कविता की विषयवस्तु के आधार पर और लगभग महादेवी से भी ज्यादा बार दोहराते हुए महादेवी की कविता को सीमित भावबोध की कविता आंसू,वेदना और करूणा की कविता आदि कहकर छुट्टी पा ली है। ...
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