कैथरीन विलियम्स की एक कविता





जितना मुझे याद है उससे ज्यादा भूल चुकी हूँ
एक बिखरे अतीत की
अनजान कहानियों में खुद को खोजती हुई।
विस्थापन,ताकत के दुरुपयोग और सरोकारविहीनता के
धुंधलके में खोई जिंदगी के बीच
पैंतालीस वर्ष बाद,
फिर मैं जीवित हुई-
अंधकार से निकल रोशनी के लिए

(प्रस्तुति -सुधा सिंह)

Comments

स्वागत है ..... आत्मा से निकली कविता ...बधाई !
इसे पढवाने के लिए आभार
achchee kavita ..........
.............. aabhar ..........

Popular posts from this blog

कलिकथा वाया बाइपासः अलका सरावगी- सुधा सिंह

आत्मकथा का शिल्प और दलित-स्त्री आत्मकथाः दोहरा अभिशाप -सुधा सिंह

महादेवी वर्मा का स्‍त्रीवादी नजरि‍या