फिलिस्तीन मुक्ति सप्ताह- गाजा में इस्राइल के युद्धापराध --जगदीश्वर चतुर्वेदी



                
                                                                                        


  फिलीस्तीनी जनता का संघर्ष अब तक के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। समस्त राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और फैसलों को ताक पर रखकर इस्राइल अपनी विस्तार वादी नीति पर कायम है। अमरीका के द्वारा इस्राइल के प्रत्येक कदम का समर्थन किया जा रहा है। एक साल पहले 27 दिसम्बर 2008 से 21 जनवरी 2009 के बीच इस्राइल के द्वारा जो तबाही गाजा में मचायी थी वह युध्दापराधों की कोटि में आती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा नियुक्त जांच कमीशन ने भी इस्राइल अपराधों पर जबर्दस्त टिप्पणी की है। फिलीस्तीनी जनता के साथ  अभी जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा है वैसा अमानवीय व्यवहार सिर्फ फासिस्ट ही करते हैं।

   सन् 2009 के जनवरी माह में 21 दिन तक चले इस्रायली हमले में फिलीस्तीनी जनता को अकथनीय कष्टों का सामना करना पड़ा। इस्राइली सेना के द्वारा किए गए हमले की जांच दक्षिण अफ्रीका के जज रिचर्ड गोल्डस्टान ने कहा नागरिक आबादी को सुचिंतित भाव से दण्डित ,अपमानित और आतंकित किया गया। समूची अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया।
     गोल्डस्टोन ने कहा कि यूएन सुरक्षा परिषद को जनवरी के हमलों के मामले को अंतर्राष्ट्रीय अपराध अदालत को सौंप देना चाहिए। दूसरी ओर इस्राइली प्रशासन और अमरीकी प्रशासन ने गोल्डस्टोन की जांच रिपोर्ट को एकसिरे से खारिज कर दिया। ओबामा प्रशासन ने साथ ही यूएनओ पर अपना हमला तेज कर दिया। आश्चर्य की बात यह है कि ईरान के परमाणु प्रोग्राम पर यूएनओ की संस्थाओं अमेरिका खुलकर इस्तेमाल कर रहा है। वहीं दूसरी ओर इस्राइल के गाजा हमले पर युध्दापराध के सवाल पर यूएनओ द्वारा गठित आयोग की सिफारिशें मानने के लिए तैयार नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि यूएनओ को अमेरिका ने अपने हितों के लिए दुरुपयोग करना बंद नहीं किया है। यूएनओ के मनमाने दुरुपयोग में फ्रांस,जर्मनी,ब्रिटेन आदि का खुला समर्थन मिल रहा है।
 ' अलजजीरा ' (26 दिसम्बर 2009) के अनुसार गाजा पर हमले के एक साल बाद इस इलाके के हालात सामान्य नहीं बनना तो दूर और भी बदतर हो गए हैं। यह इस्राइली नीतियों के द्वारा दिया गया सामूहिक दंड़ है और इसे सुचिंतित ढ़ंग से आर्थिक तौर पर फिलीस्तीन जनता को बर्बाद करने के लिहाज से लागू किया जा रहा है। इस्राइल के द्वारा 90 के दशक में गाजा और दूसरे इलाकों की आर्थिक नाकेबंदी का सिलसिला आरंभ हुआ था, सन् 2006 में व्यापक नाकेबंदी की गयी। यह नाकेबंदी फिलीस्तीन संसद के चुनावों में हम्मास के जीतने के बाद की गयी और उसके बाद से किसी न किसी बहाने फिलीस्तीनी इलाकों की नाकेबंदी जारी है। आर्थिक नाकेबंदी का फिलिस्तीनी जनता पर व्यापक असर हुआ है।
  अलजजीरा के अनुसार सन् 2007 के बाद गाजा में इम्पोर्ट आठ गुना बढ़ गया़।बेकारी 40 प्रतिशत बढ़ गयी। बमुश्किल मात्र 7 प्रतिशत फैक्ट्रियों में काम हो रहा है। गाजा में ट्रकों के जरिए सामान की ढुलाई 25 प्रतिशत रह गयी है। अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं,बच्चों की असमय मौत,कुपोषण और भयानक भुखमरी फैली हुई है। इस्राइल ने समग्रता में ऐसी नीति अपनायी है जिसके कारण समूची फिलीस्तीनी जनता को दंडित किया जा रहा है। 'यरुसलम पोस्ट' के अनुसार इस्राइल के राष्ट्रपति ने कहा है कि गाजा की जनता को हम ऐसा सबक सिखाना चाहते हैं जिससे वह इस्राइल हमले करना भूल जाए। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार इस्राइली अधिकारी यह मानकर चल रहे हैं कि गाजा पर किए जा रहे हमलों और नाकेबंदी से त्रस्त होकर फिलीस्तीनी जनता हम्मास को गद्दी से उखाड़ फेंकेगी।
     उल्लेखनीय है कि आम जनता पर किए जा रहे जुल्मो-सितम की पध्दति मूलत: आतंकी रणनीति का हिस्सा रही है। गाजा की नाकेबंदी का लक्ष्य है जनता को अ-राजनीतिक बनाना और अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर बनाना। इस्राइली नीति का मूल लक्ष्य है गाजा के विकास को खत्म करना।
    गाजा की तबाही का व्यापक तौर पर आम जनता पर बहुत बुरा असर हुआ है। डाक्टरों की मानें तो गाजा की आधी से ज्यादा आबादी को युध्द की भयावह मानसिकता से निकलने के लिए मनो चिकित्सकों की मदद चाहिए। अहर्निश युध्द और नाकेबंदी ने युवाओं को पूरी तरह बेकार बना दिया है। खासकर पुरुषों को कहीं पर भी सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। विगत कई सालों में इस्राइली हमलों के कारण समूची गाजा की आबादी को सामूहिक मानसिक बीमारियों में धकेल दिया गया है।
आमतौर पर वयस्क पुरुषों को सामाजिक सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है लेकिन गाजा में पुरुषों को ही सबसे ज्यादा संकटों का सामना करना पड़ रहा है।आज वे संरक्षक नहीं रह गए हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों और औरतों पर क्या गुजर रही होगी सहज ही कल्पना की जा सकती है। इस्राइल के द्वारा फिलीस्तीनी जनता को सामूहिक दंड देना शुध्द फासीवाद है।






      

           



              

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'युध्दापराध' नहीं, 'युद्धापराध' लिखिये।

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