स्‍त्री का शरीर,कमरा और वि‍जन

स्त्रीवादी साहित्यालोचना विमर्श वर्जीनिया वुल्फ और क्लेरीस लिस्पेक्टर के बिना अधूरा है। वर्जीनिया वुल्फ और क्लेरीस लिस्पेक्टर ने स्त्रीवादी साहित्यालोचना में जिन धारणाओं को रचा और साहित्य के जिन नए मानकों की सर्जना की है वे आज स्त्री आलोचना की धुरी हैं। संसार में स्त्री सृष्टि के आरंभ से है] उसकी चर्चा भी उतनी ही पुरानी है। किन्तु कुछ ऐसा उलटा पुलटा हुआ है कि स्त्री मातहत हो गयी] अधिकारहीन हो गयी। घर की मालकिन बना दी गयी किन्तु उसके पास अपने लिए कोई स्वतंत्र रहने का कमरा या कोठरी तक नहीं थी।
उसका संसार में अस्तित्व था]संसार की सारी वस्तुएं उसके लिए थीं]उसके बिना कोई भी चीज अच्छी नहीं लगती थी। किन्तु वह किसी भी वस्तु को पा नहीं सकती थी। वस्तु]संसार और संस्कृति के केन्द्र में वह थी]परन्तु इस संसार से बेदखल थी।संसार से औरत को किसने बेदखल किया, उसका आशियाना किसने उजाड़ा। वह क्यों इस संसार में आई और उसके क्या अधिकार थे, क्या संसार में उसके लिए एक गज जमीन भी छोड़ी गयी ,वगैर आशियाने और बगैर धन के वह असहाय थी। वह मानवता की सबसे बड़ी सर्जक थी और सबसे बड़ी गरीब भी थी।
किन्तु हमारे साहित्यकारों ,कलाकारों,संस्कृतिकर्मियों आदि ने उसे कला के सृजन में इस कदर महिमामंडित किया कि उसके सवालों पर , उसके जीवन की कठोर वास्तविक समस्याओं पर कभी ध्यान ही नहीं गया। स्त्री के जितने आकर्षक चित्र बनाए गए उतने आकर्षक चित्र भगवान के भी नहीं बनाए गए। सृजन में जितने बड़े कैनवास को उसने घेरा हुआ है, वास्तव जीवन में उसके पास एक कमरा भी नहीं है।वह सबकी है,सब उसके मालिक हैं, किन्तु उसके पास कुछ भी नहीं है।
साहित्य की दुनिया में वर्जीनिया वुल्फ पहली लेखिका है जिसने औरत के अपने कमरे का सवाल उठाया। सामाजिक जीवन में औरत की अधिकारहीनता और असहाय अवस्था को यदि देखना हो तो यह देखें कि उसके पास अपना कमरा है या नहीं ,उसके पास अपना पैसा है या नहीं ,स्त्री अपना सृजनात्मक विकास करे,सुख और शांति से जीवन यापन करे, इसके लिए जरूरी है कि उसके पास अपना आशियाना और पैसा होना चाहिए। आशियाना उसकी स्वायत्तता का प्रतीक है।
वर्जीनिया वुल्फ का मानना है स्त्री और कहानी के अन्तस्संबंध की धुरी है कमरा। स्त्री अपना रचे और स्वायत्त रूप में जीवन यापन करे इसके लिए कमरा और पैसा ये दो चीजें उसके पास होनी चाहिए।यदि स्त्री के पास अपना कमरा नहीं है,पैसा नहीं है तो उन तमाम सवालों पर बातें न की जाएं जिन्हें औरतों के संबंध में उठाया जाता है।मसलन् औरत क्या है। स्त्री की कहानी कैसी है।
स्त्री को कहानी लिखने के लिए अपना कमरा और पैसा ये दोनों चाहिए।चूंकि स्त्री के सवाल विवादास्पद होते हैं अत: उसका सत्य बहुत मुश्किल से ही सामने आ पाता है। स्त्री के सवालों पर विचार करते समय निष्कर्ष निकालने की जरूरत नहीं है।निष्कर्ष ऑडिएंस को निकालने दीजिए।वक्ताओं के जितने पूर्वाग्रह हैं,मूर्खताएं हैं उन्हें सामने आने दीजिए। हमें स्त्री के तथ्य की बजाय स्त्री सत्य पर रोशनी डालनी चाहिए।
प्रत्येक रचनाकार अपने युग और स्वयं को बदलने वाली अनुभूतियों को व्यक्त करता है। इन अनुभूतियों को आरंभ में लोग स्वीकार नहीं करते।किसी न किसी कारण से भयभीत रहते हैं। रचना में व्यक्त अनुभूतियों को पुरानी कृति में व्यक्त अनुभूतियों के साथ मिलाकर देखें तो हमेशा नया तत्व दिखाई देगा।
वुल्फ ने कहा आधुनिक कवि की मुश्किल यह है कि उसकी कविता की दो पंक्तियां भी याद रखना मुश्किल है। हमें कविता या साहित्य पढ़ते समय यह देखना चाहिए कि उसमें सत्य क्या है ,और भ्रम क्या है ,कौन सी चीज है जो हमारे भ्रमों को नष्ट कर रही है।सत्य को सामने ला रही है। हमें इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि गरीबी या समृध्दि का औरत के दिमाग पर क्या असर होता है।
पैसा होता है तो आदमी सुरक्षा और संवर्ध्दन के बारे में सोचता है। अभाव या गरीबी में असुरक्षा के बारे में सोचता है।अन्य पर क्या असर होगा ,इसके बारे में सोचता है। स्त्री के पास आर्थिक अभाव ही है जो उसे परंपरा के अभाव में जीने के लिए मजबूर करता है। हम यह भी सोच सकते हैं कि लेखक पर परंपरा के अभाव का क्या असर होता है।
वुल्फ कहती है आप ऐसे कमरे की कल्पना करें जिसमें हजारों खिड़कियां हों, जिनसे आप बाजार में आने जाने वालों को देख सकें,गाडियों को देख सकें।उस कमरे के अंदर एक टेबिल हो ,सादा कागज हों और उन पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हो स्त्री और कहानी । इसके अलावा और कुछ न लिखा हो। हमें यह भी सवाल करना चाहिए कि मर्द शराब क्यों पीता है और औरत पानी क्यों पीती है ,एक लिंग इतना समृध्द क्यों है , और दूसरा इतना दरिद्र क्यों है , गरीबी का कहानी पर क्या असर होता है ,कला सृजन की अनिवार्य परिस्थितियाँ कौन सी होती हैं , इन सवालों का हमें जबाव देना होगा।जबाव खोजते समय समझदारों से सलाह लेनी होगी और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना होगा।हमें भाषा की जटिलता और शरीर के भ्रमों से मुक्त होना होगा। हमें सत्य को खोजना होगा।सत्य किताबों में नहीं मिलता।कलम और कागज पकडना ही सत्य है।इससे आत्मविश्वास बढ़ता है,जानकारी बढ़ती है।मैंने इसी के सहारे सत्य को जानने की कोशिश की है।
वुल्फ ने सवाल उठाया है कि क्या हम जानते हैं कि एक साल में औरत पर कितनी पुस्तकें लिखी गयीं , पुरूष पर कितनी पुस्तकें लिखी गयीं , क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा चर्चा औरत की हुई है। यही वह बिंदु है जहां पर मैं आपसे कागज और कलम के बारे में बातें करना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप अपनी सुबह पढ़ने में गुजारें।
वुल्फ ने स्त्रियों की नैतिकता,सामाजिकता ,स्त्री को पुरूष की तुलना में हेय,अनैतिक और घटिया सिध्द करने वाली सभी किस्म की पुस्तकों के बारे में लिखा कि ये मेरे किसी काम की नहीं हैं। ये पुस्तकें वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेकार हैं।ये पुस्तकें निर्देशों,स्वार्थों और बोरियत से भरी होती हैं।इनमें तथ्यों के नाम पर आदतों का वर्णन रहता है।ये खास रंग में रंगी होती हैं।यह उजाले में चमकने वाला सच नहीं है।अत: ऐसी पुस्तकों को लौटा देना चाहिए। पुरूष गुस्सा इसलिए है क्योंकि उसके पास ताकत है।समृध्द लोग गुस्सा इसलिए होते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि गरीब लोग उनकी संपत्ति छीन लेंगे।
जब कोई प्रोफेसर स्त्री को हेय या हीन बनाकर पेश करता है,स्त्री के प्राइवेट जीवन के उदाहरण देता है, स्त्री के समर्पण की प्रशंसा करता है तो उसका सरोकार स्त्री की हीनता से नहीं होता,बल्कि वह अपनी श्रेष्ठता को सिध्द करना चाहता है। वह अपनी श्रेष्ठता को सुरक्षित रखना चाहता है। उस पर अतिरिक्त बल देता है। क्योंकि उसके लिए वही नायाब है,हीरा है।
वुल्फ ने लिखा है स्त्री और पुरूष दोनों की जिन्दगी जटिल है और संघर्षों से भरी पड़ी है।इन संघर्षों के लिए विलक्षण दुस्साहस और क्षमता की जरूरत है।स्वयं पर विश्वास करने की जरूरत है। आत्मविश्वास की जरूरत है।स्वयं पर विश्वास के बगैर हम इस संसार में बच्चे हैं। आत्मविश्वास कैसे पैदा करें।यह अमूल्य गुण है,हमें इसे जल्दी पाना होगा।आत्मविश्वास हम जल्दी तब ही पाते हैं जब अन्य को हीन या हेय बनाते हैं,यह अनुभूति पैदा करते हैं कि अन्य से श्रेष्ठ हैं। पद, संपदा,नाक आदि में श्रेष्ठ हैं।
नेपोलियन और मुसोलिनी ने स्त्री को हीन माना।जबकि औरत हीन नहीं थी। असल में वे औरत को बड़ा बनाना ही नहीं चाहते थे।इससे यही पता चलता है कि मर्द कैसी औरत चाहता है।यह भी पता चलता है कि जब उसके विचारों की आलोचना होती है तो वह कितना व्यग्र हो जाता है।बेचैन हो जाता है।मर्द से यह कहना मुश्किल है कि उसकी पुस्तक खराब है। हमारा समाज लंबे समय से स्त्री को संरक्षण में रखता चला आया है।
वुल्फ के अनुसार भविष्य में स्त्री को संरक्षित रखने का विचार खत्म हो जाएगा।वह सभी किस्म की गतिविधियों में हिस्सा लेगी।वह उन तमाम गतिविधियों में हिस्सा लेगी जिनमें हिस्सा लेने पर पाबंदी थी।स्त्री को संरक्षित रखने के सभी किस्म के विचार खत्म हो जाएंगे।वुल्फ के अनुसार स्त्री संरक्षण के सभी किस्म के विचारों को खत्म कर देना चाहिए।उसे सभी चीजों का सामना करने देना चाहिए।सभी किस्म की गतिविधियों में भाग लेने देना चाहिए।हमें दरवाजे खोलने चाहिए।हमें देखना चाहिए कि औरत किस तरह की अवस्था में रहती है।उसे किस तरह की परेशानियों में जीना पड़ता है।हम यह सब जाने वगैर सवाल उठा देते हैं कि औरत ने क्या महत्वपूर्ण लिखा है। यह सवाल भी उठाया जाता है कि मर्द ने महान् रचनाएं लिखीं औरत ने क्यों नहीं लिखीं वुल्फ कहती है औरत की कहानी चमकीली तरंग की तरह है।यह ऐसी चमकीली तरंग है जो चारों ओर रोशनी फेंकती है।उसमें मानवीय व्यथा भरी हुई है।उसके दुख भौतिक वस्तुओं से जुड़े हैं।संपत्ति और पैसे जुड़े हैं।
वुल्फ का मानना है कि स्त्री ,पुरूष की तुलना में कहीं न कहीं गरीब होती है।किन्तु उसकी इस स्थिति को समझने के लिए हमें यह देखना चाहिए कि वह किस तरह की अवस्था में रहती है। मध्यकालीन कवयित्रियों के बारे में वुल्फ ने लिखा कि 16वीं शताब्दी में औरतें कविताएं लिखती थीं।वे असंतुष्ट रहती थीं। यह ऐसी औरत थी जो स्वयं के खिलाफ संघर्ष कर रही थी।अपनी जीवन परिस्थितियों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी।उसकी सहजजात वृत्तियां उसकी मानसिक अवस्था के खिलाफ बगावत कर रही थी।इसके बावजूद उसका सर्जक दिमाग था।
18 वीं सदी में रूसो के आने के बाद आत्मस्वीकृति और आत्मकथाएं सामने आती हैं। पुरूषों की आत्मकथाएं लिखी गयीं। आत्मविश्लेषण और आत्मस्वीकृति की शुरूआत आधुनिककाल में हुई। बड़े से बड़ा लेखक आधुनिककाल के पहले आत्मविश्लेषण नहीं कर पाया। क्योंकि उसके जीवन की प्रत्येक चीज उसकी मानसिक अवस्था के विपरीत थी। उसकी समग्र भौतिक परिस्थितियां उसके खिलाफ थीं।
मध्यकाल में औरतों के पास कुछ नहीं था।यह अभाव उस समय और भी भयावह हो उठा जब औरत को अपने लिए एक कमरे की जरूरत थी। वह चाहती थी कि उसका अपना कमरा हो,वह शांत एकांत में रह सके।किंतु उसे ऐसी जगह मिलनी असंभव थी। संपन्न परिवार की औरतों के पास ही अपना कमरा था।
वुल्फ कहती है मध्यकाल के कवियों के आर्थिक आधार को देखें।उनकी घूमन्तू अवस्था को देखें। उनके विचारों को देखें तो समाज के साथ रचनाकार की एक खास किस्म की मुठभेड़ नजर आएगी।ये रचनाकार खास किस्म के विरोध को झेल रहे हैं।स्थिति इस कदर खराब है कि लेखकों को किसी ने नहीं कहा कि वह क्या लिखे।लेखन के लिए अच्छा क्या है इस संदर्भ में भी कुछ नहीं लिखा।समाज में एक तबका था जो औरतों को बौध्दिक कार्यों से अलग रखता था।वे यह समझते थे कि औरतें बौध्दिक कार्य नहीं कर सकतीं।वुल्फ ने लिखा है कि स्त्री की मुक्ति की कहानी जितनी दिलचस्प है उससे ज्यादा दिलचस्प है पुरूष के द्वारा स्त्री मुक्ति को रोकने की कहानी।
वुल्फ ने मध्यकालीन इंग्लैण्ड और अंग्रेजी साहित्य और समाज में व्याप्त स्त्री विरोधी माहौल का जिस तरह का मूल्यांकन किया है।उसकी तुलना यदि भारतीय परंपरा और साहित्य में स्त्रियों की अवस्था को लेकर की जाए तो एक फ़र्क साफ देखा जा सकता है।
हिन्दी में स्त्रियां भक्ति आंदोलन के दौरान जमकर लिख रही थीं। संत होकर लिख रही थीं। भक्त होकर लिख रही थीं।कलाओं के जटिल क्षेत्रों खासकर कामुकता,संगीत,कविता,नृत्य,संगीत आदि के क्षेत्र में स्त्रियों का गहरा प्रभाव था।सृजन के क्षेत्र में ऋग्वेद से लेकर रीतिकाल तक स्त्री लेखिकाओं की परंपरा मिलती है। इनकी रची कविताओं में भाषा का जो श्रेष्ठ रूप मिलता है उससे उनकी वैचारिक प्रौढता का आभास मिलता है। वुल्फ के अनुसार अंग्रेजी साहित्य में 16वीं शताब्दी के पहले स्त्री की कविता नहीं मिलती।औरतों का अपने नाम से लिखना मुश्किल था।अपने नाम से लिखने में जोखिम था।पुरूष की तरफ से खतरे थे।
वुल्फ का मानना है महान् रचना अकेले व्यक्ति की देन नहीं होती। वह अनेक वर्षों के साझा चिन्तन की देन होती है।रचनाकार के सोच में जनता का सोच भी शामिल होता है।जनता का अनुभव भी शामिल होता है।
वुल्फ के रचना संसार में दो किस्म के स्त्री शरीर का रूपायन मिलता है। एक वह औरत जो वास्तव जीवन में है,उसका शरीर है।दूसरी वह औरत जो आईने में नजर आ रही है। आईने में नजर आने वाली औरत और वास्तव औरत के बीच फ़र्क होता है।वुल्फ कहती है कि उसने अपनी आत्मकथा में जो लिखा है,वह उस औरत का बयान है जो आईने में नजर आ रही थी।आईने में नजर आने वाली वुल्फ स्वयं को ही चुनौती देती है।वह अपने दुखद बचपन को याद करती है। वुल्फ ने लिखा है मैं स्वर्त:स्फूत्त आनंदातिरेक और उससे विचलन सघन रूप में बगैर किसी शर्मिन्दगी या कुण्ठा के तब तक महसूस करती हूँ जब तक वह मेरे शरीर से पृथक रहता है। आनंदातिरेक और विचलन का मजा तब आता है जब वह शरीर से पृथक हो।इसका अर्थ यह है कि आनंदातिरेक और विचलन को वुल्फ ने शरीर से नहीं आत्मा से जोडकर देखा है।'लाइट हाउस' में एक जगह लिखा है स्त्री के निज के शरीर की अनुभूति उसके दिमाग की अनुभूति नहीं है। शरीर के जरिए आनंदानुभूति एकदम भिन्न किस्म की अनुभूति है।वुल्फ जिस शरीर की बात कर रही है,यह वह शरीर है जो आईने में नजर आता है। आईने का शरीर आनंदातिरेक पैदा करता है। यह ऐसा शरीर है जहां किसी तरह के नियम लागू नहीं होते। जबकि वास्तव शरीर पर सामाजिक नियम और संहिता लागू होती है।वुल्फ जिस औरत के शरीर की बात कर रही है वह आधुनिकतावादी औरत का शरीर है।इसके आधार पर वुल्फ ने एक भिन्न किस्म के स्त्री शरीर की परिकल्पना पेश की है।यह भिन्न शरीर है। जेण्डर से भिन्न शरीर है।वास्तव शरीर से भिन्न है।
वास्तव शरीर तो वर्चस्वशाली व्यवस्था को व्यक्त करता है।इसे वुल्फ ने 'विजनरी वॉडी' कहा है।यह नाम असल में वुल्फ के चिन्तन की ही देन है। वुल्फ ने उपन्यास के बारे में लिखा है कि दो तरह के उपन्यास होते हैं।एक उपन्यास तथ्य होता है।दूसरा उपन्यास विजन होता है।वुल्फ ने स्त्री की 'विजनरी वॉडी' का व्यापक रूप में चित्रण किया है। इस चित्रण का संबंध उसके आधुनिकतावादी सोच है।इस चित्रण में स्त्री का धैर्य, संवेदनाएं, आकर्षण आदि का चित्रण स्त्री की सामाजिक परिस्थितियों पर प्रभाव को ध्यान में रखे बिना किया गया है। इस तरह के चित्रण का स्त्री की कामुकता पर क्या असर होगा ,इसका ध्यान नहीं रखा गया।'विजनरी बॉडी' में स्त्री के मातृत्व पर जोर है।यही वजह है 'अपना कमरा' को स्त्रीवादी विचारकों ने पिता के लिए चुनौती माना।यह रचना मातृत्व की सत्ता,स्वायत्तता और परंपरा को स्थापित करने का प्रयास भी है।यह आधुनिकतावादी अवांगार्द का मातृत्व है।
वुल्फ के नजरिए की खूबी है कि उसने स्त्री के सवालों पर आधुनिकतावादी नजरिए से देखा है। यही वजह है कि वह स्त्री को अशरीरी या रहस्यमय नहीं बनाती।बल्कि प्रच्छन्नत: कामुक शारीरिक अनुभूतियों को अभिव्यक्त करती है।इसी क्रम में वह स्त्रीवाद और आधुनिकतावाद का अन्तस्संबंध भी बनाती है।वुल्फ के लिए यह संबंध आरामदायक नहीं है। बल्कि तनावपूर्ण है।वह विवाद ज्यादा पैदा करता है। संतोष कम देता है।माँ के बहाने वुल्फ ने स्त्री शरीर की समाज में असुरक्षा,जटिलता आदि के साथ मुठभेड़ ज्यादा की है।वुल्फ की स्त्रियों के प्रति जिज्ञासा का प्रधान कारण है उसका स्त्रियों को लेकर सामाजिक अनुभव। उसने पाया कि औरतों का शोषण हो रहा है। पतन हो रहा है।यही चीज वुल्फ को स्त्री साहित्य की परंपरा की खोज की ओर ले गयी। इसी क्रम में वह पाती है कि साहित्य के इतिहास में समाज की कहानी तो मिलती है,किन्तु 'विजनरी वॉडी' नजर नहीं आती।'विजनरी बॉडी' मूलत: कामुकता के प्रचलित वर्गीकरणों को ध्वस्त करती है।उन्हें अस्वीकार करती है।'विजनरी वॉडी' में इच्छाएं व्यक्त होती हैं, किन्तु सीमित अर्थ में रूपकों में व्यक्त होती है। 'विजनरी वाडी' स्त्री की इच्छाओं का स्रोत खोजने ,सृजनात्मकता को खोजकर सामने लाने का काम करती है। यह शरीर सीमित नहीं असीमित है।अंतिम विश्लेषण में यह सामाजिक संगति और बौध्दिकता को व्यक्त करता है।समाज में 'विजनरी बॉडी'और 'सामाजिक शरीर' को लेकर स्पष्ट विभाजन दिखाई देता है। 'विजनरी बॉडी' में सटीक अनुभूतियां व्यक्त होती हैं। ये अनुभूतियां परिवार का निषेघ करती हैं।रिश्तेदारी का निषेध करती है। सामाजिक दायित्व का निषेध करती है।
वुल्फ का मानना है कि स्त्री लेखिका को बगैर किसी बाधा के अपने विजन पर केन्द्रित होना चाहिए।वह इसमें जितनी तल्लीन होगी उसका जीनियस और मौलिकता उतनी ही व्यापक गहराई में जाकर अभिव्यक्ति पाएगी। वुल्फ के यहां 'व्यक्ति' और 'गैर-व्यक्ति' के बीच विरोध भाव व्यक्त हुआ है।वुल्फ की चिन्ता यह है कि स्त्री को उसके शोषण से कैसे मुक्ति दिलायी जाए,उसके नजरिए में विक्टोरियन अवांगार्द समाज की औरत को अभिव्यक्ति मिली है। वुल्फ ने बार-बार यही रेखांकित किया है स्त्री का शरीर खतरे में है। 'विजनरी औरत' का चित्रण करते हुए उसने सांस्कृतिक रूप से वैध असुरक्षा को निशाना बनाया है। उनके समाधान खोजने की कोशिश की है।वह 'विजनरी शरीर' को सामाजिक प्रभावों से मुक्त रखती है। यह ऐसा शरीर है जहां कोई हस्तक्षेप नहीं है।कोई हमला नहीं कर सकता। 'वूमेन एंड फिक्शन' और 'अपना कमरा' नामक कृति में वुल्फ ने भौतिकवादी और रूपान्तरणकारी नजरिए से रेखांकित किया है कि स्त्री का जीवन भौतिक परिस्थितियों के कारण सीमाबध्द रहा है।यही वजह है कि स्त्री लेखन क्रमश: विकसित हुआ है। उसकी गुणवत्ता में क्रमश: निखार आया है।
स्त्री की 'विजनरी बॉडी' मूलत: स्त्री कामुकता के प्रचलित विभाजनों और वर्गीकरण को ध्वस्त करती है।उन्हें अस्वीकार करती है।'विजनरी बॉडी' में इच्छाएं व्यक्त होती हैं।स्त्री की इच्छाओं के स्रोत खोजने के लिए उसकी सृजनात्मक अभिव्यक्तियों को सामने लाती है। वुल्फ के यहां स्त्री की सीमित इमेज नहीं है।बल्कि अंतिम विश्लेषण में औरत असीमित है।वह सामाजिक संगति और बौध्दिकता की खोज करती है।
वुल्फ का मानना है स्त्री को माँ के नजरिए से देखा जाना चाहिए।अंग्रेजी के पुराने (मध्यकालीन) स्त्री लेखन के बारे में वुल्फ का मानना है कि वह ईश्वरीय स्वर्त:स्फूर्तता की अभिव्यक्ति है।वह साधारण लेखन है।पुरानी स्त्री की जिन्दगी वगैर किसी व्यवस्था के थी। अत: उसका कोई महत्व नहीं है।वहां तो सिर्फ स्वर्त:स्फूर्त्‍त अभिव्यक्ति मिलती है।पुराना स्त्री लेखन घरेलू और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर अक्षम साबित हुआ है। वुल्फ ने उन तमाम तर्कों का विस्तार से खण्डन किया जिसमें स्त्री को पुरूष की तुलना में हेय माना गया था। वुल्फ ने लिखा है कि यह तथ्य अचम्भित करता है। और मैं कहूँगी कि किसी भी तटस्थ विश्लेषक या दर्शक को भी अचम्भित करेगा कि सत्रहवीं शताब्दी में 16वीं शताब्दी से ज्यादा महत्वपूर्ण महिलाएं सामने आयीं।18वीं शताब्दी में सत्रहवीं शताब्दी से ज्यादा महत्वपूर्ण महिलाएं सामने आयीं।यदि 17वीं से लेकर 19वीं शताब्दी के बीच के तीन सौ साल की महिलाओं को मिलाकर देखें तो ये महिलाएं पुरानी महिलाओं की तुलना में ज्यादा संवेदनशील और क्षमतावान नजर आती हैं।
वुल्फ ने स्त्री के सहजजात गुणों की बजाय स्त्री लेखन को स्त्री के विकास का आधार बनाया है। स्त्री के सहजजात गुणों के आधार ही पुरूष उसे अपने से हेय मानता रहा है। 'वूमेन एंड फिक्शन' और 'अपना कमरा' इन दोनों कृतियों में स्त्री के भविष्य की ओर संकेत है। यह ऐसी औरत है जिसकी अपनी आमदनी होगी।अपना कमरा होगा।यही उसकी कला का ठोस आधार होगा।ये दोनों रचनाएं भौतिकवादी और विकासवादी है।
स्त्री और पुरूष दोनों किस्म के लेखन में संरक्षक का बड़ा महत्व है। वुल्फ ने संरक्षक के सवाल पर विचार करते हुए लिखा है कि आम तौर पर स्त्री पुरूष दोनों ही अव्यावहारिक सलाह के आधार पर लिखते हैं। सलाह देने वाले यह सोचते ही नहीं हैं कि उनके दिमाग में क्या है।लेखक चाहे या न चाहे वे अपनी सलाह दे देते हैं। लेखक को अपना आश्रयदाता,संरक्षक,सलाहकार सावधानी के साथ चुनना चाहिए।लेखक को लिखना होता है जिसे अन्य कोई पढ़ता है। आश्रयदाता आपको सिर्फ पैसा ही नहीं देता बल्कि यह भी बताता है कि क्या लिखो,इसकी प्रच्छन्न रूप में सलाह या प्रेरणा भी देता है। अत: आश्रयदाता या संरक्षक ऐसा व्यक्ति हो जिसे आप पसंद करते हों।लोग जिसे पसंद करें।यह पसंदीदा व्यक्ति कौन होगा , कैसा होगा , प्रत्येक काल में पसंदीदा व्यक्ति की अवधारणा बदलती रही है।
मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक लेखक के आश्रयदाता और पसंदीदा व्यक्ति का विवेचन करने के बाद वुल्फ ने लिखा है प्रत्येक लेखक की अपनी जनता होती है। अपना पाठकवर्ग होता है।यह पाठकवर्ग आज्ञाकारी की तरह अपने लेखक का अनुसरण करता है। उसकी रचनाएं पढ़ता है।लेखक अपनी जनता के प्रति सजग भी रहता है।उससे ज्यादा श्रेष्ठ बने रहने की कोशिश भी करता है।लेखक की अपनी जनता में जनप्रियता अपने लेखन के कारण होती है। क्योंकि लेखन ही संप्रेषण है।
आधुनिक लेखक का संरक्षक उसका पाठकवर्ग है,जनता है।आधुनिक काल में पत्रकारिता का लेखक पर दबाव होता है कि वह प्रेस में लिखे,पत्रकारिता पूरी कोशिश करती है कि किताब में लिखना बेकार है,कोई नहीं पढ़ता,अत: प्रेस में लिखो।
वुल्फ ने लिखा है इस धारणा को चुनौती दी जानी चाहिए। किताब को हर हालत में जिन्दा रखा जाना चाहिए।किताब को पत्रकारिता के सामने जिन्दा रखने के लिए जरूरी है कि उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए।हमें ऐसे संरक्षक की खोज करनी चाहिए जो पढ़ने वालों तक पुस्तक ले जा सके। हमें किताब के साथ खेलने वालों की नहीं पढ़ने वालों की जरूरत है।ऐसा साहित्य लिखा जाए जो अन्य युग के साहित्य को निर्देशित कर सके,अन्य जाति के लोगों को आदेश दे सके।
लेखक को अपने संरक्षक का चुनाव करना चाहिए,यह उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।सवाल यह है कि उसे कैसे चुना जाए , कैसे अच्छा लिखा जाए , वुल्फ ने सवाल उठाया है कि हमारे साहित्य में स्त्री का चेहरा तो आता है।किन्तु उसकी इच्छाएं नहीं आतीं।उसके भाव नहीं आते। उसके प्रति सबके मन में सहानुभूति है,वह सब जगह दिखाई भी देती है। किन्तु उसकी इच्छाएं कहीं भी नजर नहीं आतीं।
वुल्फ कहती है पुस्तक कैसे पढ़ें इसके बारे में कोई भी निर्देश नहीं दिए जा सकते।प्रत्येक पाठक को जैसे उचित लगे पढ़ना चाहिए। उसे अपने तर्क का इस्तेमाल करना चाहिए और अपने निष्कर्ष निकालने चाहिए।हमें स्वतंत्रता का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु कहीं ऐसा न हो कि इसका दुरूपयोग होने लगे। पाठक की शक्ति का सही इस्तेमाल करने के लिए उसके प्रशिक्षण की भी जरूरत है।पुस्तक पढ़ते समय यह ध्यान रखा जाए कि हम कहां से शुरूआत करते हैं , हम पाठ में व्याप्त अव्यवस्था में कैसे व्यवस्था पैदा करते हैं,उसे कैसे एक अनुशासन में बांधकर पढ़ते हैं।जिससे उसमें गंभीरता से आनंद लिया जा सके। पुस्तक पढते समय हमें विधाओं में प्रचलित मान्यताओं का त्याग करके पढ़ना चाहिए।मसलन् लोग मानते हैं कि कहानी सत्य होती है। कविता छद्म होती है। जीवनी में चाटुकारिता होती है, इतिहास में पूर्वाग्रह होते हैं। हमें इस तरह की पूर्व धारणाओं को त्यागकर साहित्य पढ़ना चाहिए। आप अपने लेखक को निर्देश या आदेश न दें। बल्कि उसे खोजने की कोशिश करें।लेखक जैसा बनने की कोशिश करें। उसके सहयात्री बनें।यदि आप पहले से ही किसी लेखक की आलोचना करेंगे तो उसकी कृति का आनंद नहीं ले पाएंगे। यदि खुले दिमाग और व्यापक परिप्रेक्ष्य में कृति को पढ़ने की कोशिश करेंगे तो कृति में निहित श्रेष्ठ अंश को खोज पाएंगे।
निबंध विधा के बारे में वुल्फ का मानना था कि निबंध छोटा भी हो सकता है और लंबा भी।गंभीर भी हो सकता है और अगंभीर भी। वह पाठक को आनंद देता है। वह किसी भी विषय पर हो सकता है।निबंध का अंतिम लक्ष्य है पाठक को आनंद देना। निबंध को पानी और शराब की तरह शुध्द होना चाहिए।अपवित्रता का वहां कोई स्थान नहीं है।निबंध में सत्य को एकदम नग्न यथार्थ की तरह आना चाहिए।सत्य ही निबंध को प्रामाणिक बनाता है।उसको सीमित दायरे से बाहर ले जाता है।सघन बनाता है।
विक्टोरियन युग में लेखक लंबे निबंध लिखते थे। उस समय पाठक के पास समय था।वह आराम से बैठकर लंबे निबंध पढ़ता था। लंबे समय से निबंध के स्वरूप में बदलाव आता रहा है। इसके बावजूद निबंध जिन्दा है। अपना विकास कर रहा है।वुल्फ का मानना था कि निबंध सबसे सटीक और खतरनाक उपकरण है।इसमें आप भगवान के बारे में लिख सकते हैं।व्यक्ति के जीवन के दुख,सुख के बारे में लिख सकते हैं।निबंध ही था जिसके कारण लेखक का व्यक्तित्व साहित्य में दाखिल हुआ। निबंध शैली का बडा महत्व है। किसी लेखक के बारे में लिख सकते हैं।यह भी सच है कि इतिहास का उदय निबंध से हुआ है।

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