कलिकथा वाया बाइपासः अलका सरावगी- सुधा सिंह
(यह भाषण जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केन्द्र द्वारा आयोजित संगोष्ठी, '1990 से 2010 तक के प्रमुख उपन्यासों पर चर्चा', में दिया गया था, अब यह पुस्तकाकार रूप में जेएनयू से प्रका शित पुस्तक 'उपन्यास का वर्तमान' में संकलित है।) 'कलिकथा वाया बाइपास' (अलका सरावगी) उपन्यास सन्1998 में प्रकाशित हुआ था। सन् 98 में प्रकाशित होने वाले इस उपन्यास का कथा फलक सन् 2000 तक जाता है और बैकड्रॉप में और भी पीछे 1940 तक। लगभग साठ सालों का समय इस उपन्यास में बँधा हुआ है। चालिस से लेकर साठ के दौरान राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं और बहुत सारे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय एजेंडा बदल गए। आज नए एजेंडा हमारे सामने हैं। नए तरह के विमर्श हमारे सामने हैं। चूँकि साठ साल की अवधि में यह उपन्यास फैला हुआ है, हमें यह देखना होगा कि यह उपन्यास इन विमर्शों को कवर कर पाता है या नहीं, और अगर करता है तो किस रूप में करता है? टेकनीक के रूप में इस उपन्यास में जिन चीजों का इस्तेमाल किया गया है उन्हें गौर से देखना चाहिए। यहाँ इतिहास का इस्तेमाल है, स्